________________ 299 ] धातुपारायणे चुरादयः (9) [341 अथ जान्ताश्चत्वारः // -- 289 भाजण पृथकर्मणि' / भाजयति, विभाजयति, अबभाजत् / क्ते भाजितम् / क्त्वो यपि विभाज्य // ___'290 सभाजण प्रीतिसेवनयोः' / 'प्रीतिदर्शनयोरित्यन्ये / समाजयति / क्ये सभाज्यते / डे अससभाजत् / अनटि समाजनम् // '291 लज 292 लजुण प्रकाशने ' / लजयति, अललजत् // * 292 लजुण्' / उदिवाने लक्ष्यति / लजुण भासार्थः [ 9 / 210 ], लअयति / लज-लजु भर्त्सने [ 11154-155 ], लजति, लक्षति // अथ टान्ताः सप्त // .. '293 कूटण दाहे ' / आमन्त्रणेऽपीत्येके। कूटयति ङे अचुकूटत् / अचि कूटम् // * 294 पट 295 वटण ग्रन्थे' / ग्रन्थो वेष्टनम् / पटयति रज्जुम् , वेष्टयतीत्यर्थः / एवं वटयति / विभाजनेऽप्ययमित्यन्ये / डे अपपटत् , अववटत् / पट गतौ [ 11195], पटति / पटण भासार्थः [ 9 / 212 ], पाटयति / वट वेष्टने [1 / 176 ], वटति / णिगि परिभाषणे घटादित्वाद् हस्वे वटयति / वटुण विभाजने [ 9 / 299 ], वण्टयति // -- 296 खेटण भक्षणे' / खेटयति / उ अचिखेटत् / णके खेटकं फलकः, ... अलि खेटो ग्रामः / “णिवेत्ति०" 53 / 111 इत्यने आखेटना / नायं खेटः, 'खेड इति देवनन्दी, खेडयति / खिट उत्वासे [ 11178 ], खेटति, अचीखिटत् // 297 खोटण क्षेपे' / खोटयति / डे अचुखोटत् / अलि खोटः / डान्तोऽयमिति देवनन्दी, खोडयति / दान्त इत्यन्ये, खोदयति // '298 पुटण संसर्गे'। पुटयति / डे अपुष्टत् / पुटत् संश्लेषणे [5 / 127], पुटति / पुटण भासार्थः [ 9 / 213], पोटयति // '299 वटुण विभाजने' / उदित्वाने वण्टयति / वण्टापयतीत्यप्येके / बटु विभाजने [205], वण्टति // 1. प्रीतिदर्शने इति क्षीरस्वामी, (क्षी. त. पृ. 316) // . 2. खेड इति दौर्गाः, (क्षी. त. पृ. 314) // 3. क्षीरस्वामी अपि, (क्षी. त. पृ. 314) // . 4. अ पुटत् इति मु० //