________________ 330 ] आचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचिते [ धा० 212 212 पट, 213 पुट, 214 लुट, 215 घट, 216 घटु, 217 वृत, 218 पुथ, 219 नद, 220 वृध, 221 गुप, 222 धूप, 223 कुप, 24 चीव, 225 दर, 226 कुशु, 227 सु, 228 पिसु, 229 कुसु, 230 दसु, 231 वह, 232 बृहु, 233 वल्ह, 234 अहु, 235 वहु, 236, महुण भासार्थाः / लोकयति, विलोकयति / ऋदिचाद् “आन्त्यस्य." 4 / 2 / 35 इति हुम्वाभावे अलुलोकत् / अन्यत्र लोक दर्शने [ 11612], लोकते // 201 तर्क' / तर्कयति / " युवर्ण०" 5 / 3 / 28 इत्यलि तर्कः, वितर्कः / ते तर्कितः / गणान्तरेषु अपठिता अप्यत्र दण्डके पाठाद् धातव एवेति अर्थान्तरे, सर्कति // अथ 'घान्तौ // ___ '202 रघु 203 लघु' / उदित्वान्ने रञ्जयति, लत्यति / अन्यत्र रघुङ लघुक गतौ [ 11637-638 ], रहते, लङ्घन्ते // अथ चान्तः // 204 लोच' / लोचयति, आलोचयति / ऋदित्वाद् " उपान्त्यस्य." 4 / 2 / 35 इति इस्वाभावे अलुलोचत् / अन्यत्र लोचङ् दर्शने [ 1646 ], लोचते // अथ छान्तः // .. ' 205 विछ' / " स्वरेभ्यः" 113 / 30 इति द्वित्वे विच्छयति / अन्यत्र विछत् गतौ [ 5 / 29 ], " अशवि ते वा" 3 / 4 / 4 इति वा ये विच्छायति, विच्छति // अथ जान्ताः षड् उदितश्च // '206 अजु' / अअयति / अन्यत्र अऔप व्यक्त्यादौ [ 6 / 16 ], व्यक्ति // '207 तुजु' / तुअयति / तुजु बलने च [ 11162 ], तुअति / / *208 पिजु' / पिअयति / अन्यत्र विजुकि संपर्चने [ 2 / 52 ], पिङ्क्ते / / "209 लजु' / लायति / अन्यत्र लजु भर्सने [ 1 / 155 ], लअति // 1. धान्तौ इति मु० //