________________ स्वोपज्ञवृत्तिस्थधातुपद्यानामनुक्रमणिका 359 वचो वृजी. जः वृषु चीकश्रीका:... षोऽन्तक्रियायां जृषज्वृष जीर्णे...||३।४।२।१७१॥ // 3 / 4 / 2 / 1 / 130 // ष्टभि स्कभि प्रतिबन्धे हेड...॥३।४।२।१।३७।। वटभट परिभाषे ष्टक च...।।३।४।२।१।५०॥ ष्ट्यैस्त्यैक्वणध्मास्तृ च घुट्य...।।३।४।२।१।२०।। वर्हतुहिर्शमुगित्यश्च शब्दे...॥३।४।२।१।१७।। ष्वल स्थाने जलो धान्ये णलो... वल्गग्लसुग्रसवस्तु ईक्षेषः...॥३।४।२।१।३३। // 3 / 4 / 2 / 1155|| वाक्यप्रबन्धेऽत् कथ खेट भक्षे..... ष्विदा क्षुध शुन्धषिधौ रधो...।।३।४।२।१।७३।। // 3 / 4 / 2 / 1 / 117 / / समाज प्रीतिसेवायां भाज...||३।४।२।१।१२१॥ वा युज् यतः संयमने शिषो....||३।४।२।१।१२८॥ संग्राम शूरवीरौ द्रुसूत्रोऽर्थन्मूत्र..॥३।४।२।१।१२२।। विजिविचिर्वा भिदि पोषणेऽपि....।।३।४।२।१।६९॥ संशब्दने कृत तु शूर्प माने....।।३।४।२।१।१०३।। वृत्स्यन्वृधुसृधुघोऽपि...||३।४।२।१।४७।। सूक्तस्तदर्थे सति भावप्रत्यये...॥३।४।२।१।१।। व्ययुत्सर्गे तुलोन्माने प्रतिष्ठायां.... स्तेये चुरलुण्ठौ स्फुटिः परिहासे.. // 3 / 421 / 104 / / // 3 / 4 / 2 / 1 / 100 // व्रश्चू खुरण संवरणे त्वचो ग्री:...॥३।४।२।१।८६॥ स्फुटव्यचो गुड रक्षणे डिपड्...॥३।४।२।१।९१|| व्री वरणे भ्री भरणे बन्ध मृड...||३।४।२।१।९८।। स्वर्जार्जी धूपतपौ भयलजलजि...॥३।४।२।१।५।। श्लोकृलोगोषहुडिपिण्डयो...।।३।४।२।१।४५॥ स्वर्द स्वद स्वाद तु शिक्षदीक्षः षहः क्रुशो बुध्वारसुरमुयसु...॥३।४।२।१।५६।। ... // 3 / 4 / 2 / 1 // 31 // षहषुहौ तथा शक्तौ संसिद्धौ...॥३।४।२।१।७२।। स्वादे रकलकरगलग पशपस...||३।४।२।१।१४।। षू गर्भमोक्षे वरणे पुनः प्रीङ् ...||3 / 4 / 2 / 1 / 78 // हयहर्यः शशफक्कशवाः ध्रज...॥३।४।२।१।१४|| घूदक्षेवृतिपृ क्षारे राधृलाधृ.॥३।४।२।१।४१॥ हिक्काऽव्यक्ते शब्देट् शृधुमधु...॥३।४।२।१।५७||