________________ 358 पञ्चग्रन्थी व्याकरणम् तितङ्मषोश्छुन्धवदार्चम;:...||३।४।२।१।९५॥ प्री पीङ् पाने बुधाऽनापुरी तृप्ती...||३।४।२।१७९।। तिलमिन्दस्निहाः चक्कचुक्क...॥३।४।२।१।१०७॥ प्लुष दाहे कुश क्लेशे क्षेपे...||३।४।२।१।७५।। तुण कुट चुण चुट त्रुट खुर छुर... प्लेवृषेवृसेवृकेवृखेवृगेवृपेवूमे...॥३।४।२।१।३९।। // 3 / 4 / 2 / 1 / 90 // फणो गतौ वृत्वतङानि राजः...॥४।२।१५३।। तुणभुजौ तु कौटिल्ये तु मुण...॥३।४।२।१।८८॥ भाम क्रोधे चर पट ग्रन्थे...॥३।४।२।१।११८॥ तुद व्यथायां दिश सर्जने कृष...॥३।४।२।१।८३|| भूरोणलुण्ठौ णिदिजीववाच्छि...||३।४।२।१।२।। तुफतृन्फशुभोंहतृतौ गुफगुम्फ...॥३।४।२।१।८५॥ भेष भये श्रिञ् षच सेवने तु...॥३।४।२।१।६२॥ तेपृकेपृशलगेपृटुवेपृघटकम्पयः...||३।४।२।१।३२॥ भ्रमुस्त्वतृप्तौ च तमुच् गृधुश्च...।।३।४।२।१।७४।। दाने ददो वृक्ष वृतौ रभस्त्वा...॥३।४।२।१।३८॥ मडिन् कुटि: कदिः ऋदि...॥३।४।२।१।४॥ दिवुश्रुवुख्खा षिवु तन्तुसन्ताने...॥३।४।२।१।७०॥ माङ्गल्यशास्त्रे च षिधू गतौ...||३।४।२।१।२९॥ दीधीङ् शिजिजिधुपृजिपृची...॥३।४।२।१।६७॥ मा ष्णाः ख्या: प्साऽदिवा या.. // 3 / 4 / 2 / 64 // दीप्तौ ज्वलोऽन्ये चलने चलि...॥३।४।२।१।५१॥ मी आङ् सदः खित् परितर्कणे... देवायत्रैङ: तुडितण्डि ताडने...॥३।४।२।१।३४।। // 3 / 4 / 2 / 1 / 129 / / द्युतशुभरुच दीप्तौ अिष्विदा...||३।४।२।१।४६॥ मुर्वीचुच्यावभिषवे जषो रोगे..||३।४।२।१।२४॥ द्रमकटहयहर्या अड्डतुड्ड...||३।४।२।१।१२॥ मेटमेडलोट्टरोड़ शोष...||३।४।२।१।८॥ धाराधृ हूछे ज्ञटमक्षपूलशोण...॥३।४।२।१।२३।। मोक्षस्तषिभूषौ दूषोऽन्धस...॥३।४।२।१।११३॥ धिवितृपौ स्मृ पृ पालनप्रीत्यो....||३।४।२।१।८२॥ म्ना अभ्यासे कटु कार्कश्ये...||३।४।२।१।२६।। धूञ् कृञ् कम्प गितो चिवा...||३।४।२।१।८१॥ म्लेच्छमदौ पठजल्पजपाः स्युः...||३।४।२।१।१८।। नक्क धक्क पसि नाशने कुण्डि...॥३।४।२।१।१०१॥ युगिजुगिवुगि वर्जे वक्ष रोषे...।।३।४।२।१।२५।। निष्क तृण परिमाण पूरणे गय... युतृजुतृकचिवर्चभ्राजभेज. च...।।३।४।२।१।४२॥ // 3 / 4 / 2 / 1 / 110 // युद्धविक्रान्त्यवमोक्षयाञ्चा...॥३।४।२।१।१२३।। पटपुटलुटपुष् स्यात् तुञ्जि...॥३।४।२।१।११६॥ रञ्च रागे शंपाक्रोशे चष भ्लक्ष...॥३।४।२।१।१९॥ पल्पूल पवनलवने दौर्बल्ये...॥३।४।२।१।१२०॥ रसमिसक्रिक्विदाशुगाः खण...॥३।४।२।१।६०॥ पवपयवयरेपृप्लिहि ईजेऽजि...॥३।४।२।१।४४॥ रह त्यागे स्वर क्षेपे मेघ शब्दे... पीवमीवतीवणीव हावने तु...॥३।४।२।१।९॥ // 3 / 4 / 2 / 1 / 119 / / पुषपुसी विभागे तसुदसु तु..||३।४।२।१।७६॥ रुधिभिदिछिदिविचीर् क्षुदियुजि...||३।४।२।१।९३।। पुंसोऽभिर्दे बुधि षट्ट घाते...।।३।४।२।१।१०९॥ रोड़ रौशिटतौदृषिटसूक्ष्य..॥३।४।२।१।२७॥ पूरणे पृ चलनेऽपि पदपषो...।।३।४।२।१।१०२॥ लिष विच्छ ऋष् क्षिश्च द्रुण रिप्.. पृची...जी जो भञ्जो तुह हिसि...॥३।४।२।१।९४।। // 3 / 4 / 2 / 184 // पैशृकनीपिशृपेस च रंहि....||३।४।२।१।१३।। लिहोऽदि तद् वा हु पृ दानपूर्यो.... प्यैङ् प्यायी वृहमहि दक्ष स्फाय्येध... // 34 / 2 / 1 / 68 / / // 3 / 4 / 2 / 30 // वचो भुव्वसु रुदिर् स्यात्...।।३।४।२।१।६५॥