________________ 348 पञ्चग्रन्थी व्याकरणम् शक्तोस्तु चार्थे भपुनर्वसू....||१।४।१।। शत्सत्सिधेड्डस्त्रसिगृध्धृष्क्षिप्....॥४।१।१६।। शर्नः क्विणोऽत्कः सकृतो...||१।२।७।। शलि म्मुकोऽलिद्वलि...॥१।१।१४।। शृङ्गाच्च वृन्दाद्धिमनिद्रतो...॥३।३।१०।। शेते मिद्ये प्राग्वच्यद्वे द्वलृक् // 3 / 4|4|| शेषे राष्ट्राद्घः खः पारावाराद्...॥३।१।१॥ श्रन्थवन्दिषोऽक्तर्भ उकी रमोडौँ...॥४।१।५॥ श्वेः श्याच्यणिक् संश्चङि णौ च...॥३।४।१८॥ सञ्जातमभ्रेभ्य इतेच्च मात्रट ... // 33 / 1 // सत्स्वञ्ज आदिलिटि निष्ट...||१।२।९।। सम्भ्रमे स्यादनेकं पदं द्विस्तु...॥२।२।१॥ सर्वविघ्नोपशान्त्यर्थं...॥१।१।२।। [सर्वस्य चेता वसुपा] // 1 / 1 / 6 // . सर्वाद्विबहोरत् पिदनोर्डसेरा...||२।३।९।। [सस्वोद्भूता अगिदुगूता...] || 1|4|| सहवह्वलः पापतिदातृजङ्ग...।।४।१।१५।। संख्याकसूत्राध्ययनाख्यसङ्के...||३।२।१०।। संख्यातोऽतिशतोऽद्वितोष्टिवसनो...॥३।२।६।। संख्या सुतोदन्त दतृ वयश्चेत् ... // 1 / 4 / 11 // संवत्सरसंख्ये संख्याधिकतो...।।२।२।७।। सिचो वाऽतङि स्तम्भुजमुच्च्लुचु...।।४।२।१५॥ सिद्धं जिनं सर्वविदं ....||1 / 1 / 1 / / [सुप्तिविरामोऽस्य...] // 1 / 17 / / सूचर्गतौ स्यात् कुटिलत्व..॥३।४।३।। सूत्रादपि संख्याकादुद्धृतमत्रा...॥२।४।१२।। सूपस्त्रिनञ्वेश्चतुरोऽप् च...||१।४।९॥ सेटस्तो ग्रह इन्न वाऽलिडि तु...||३।४।११।। सोऽस्य प्राप्तः समयादृत्वा...॥३।२।३।। सौऽम्यौति युक्ताद्यवजादि....॥१।२।४।। स्तम्भेश्च निश्रानिकटोर्जने...।।१।२।८॥ . स्त्यार्थादधातोरसुपो यकन्ता...॥१॥१७॥ स्फुर्चेर्वाऽजात् क्रीजीङा स्यादू..३।४।८॥ .. स्याच्छाकटं शाकिनः शालिव्रीहे.....॥३।१।११।। स्याद् वामदेव्यं प्रथमेऽण् कुमार्या:....।२।४।१०|| स्वौजसमौट्छष्टाभ्यां भि...॥१॥३१॥ [स्स्वैवाइदेर्तिगवाऽदत्त्वा...] // 11 // / हलादेस्त्यु वाव्यश्च सन्वीटि रुद्वि...||३।४।१७।। हस्तोत्पुटैः कौटिलिकष्ठ वीज्भिः..॥३।२।१३।। हि झल्होधि हल्श्ना अनश्श्मिन्नतो....।४।२।१३।। हितं चतुर्थ्यन्ताद् यवादेर्यः..||३।१।१४|| हेत्वङ्कयो द्विट्सुअमित्रपत्यो...।।४।१।२०।। हैयंगवीनं च कचो ढोणीको..।।२।४।४।। हुस्वाः ह्रसादीम्नि च भूयबहोरें..।।२।२।२।। हुस्वो नोऽतोऽस्त्रितरा...॥१।२।१।।।