________________ 346 पञ्चग्रन्थी व्याकरणम् कुञ्चजो युक्विनः कुः..।१।२।१२।। क्रौड्यादिगोत्रे त्वणिोः स्त्रियां..।।१।३।५।। क्षणश्वसो ववज इट् तङि स्था..।।४।२।३।। क्षेपे तु पूजा स्वतितष्ट...।।१।४।८।। खारीकाकिण्याः कप् क्रीतं..॥३।२।७।। खित्यचादेरचोऽरुन्तुदादे..॥२॥१७॥ खुकष्णवः खित्सुभगाढ्यनग्न...||४|१।६।। घिडस्सु नर्टा जुडथास्मदः कं..॥१।२।१४।। घ्राधेशाच्छासोऽतङ्लुक् स्थेदा..।।४।२।२।। ङ: पूरणं षट्चतुरः कतेः थुक्..॥३।३।३।। ङि: सर्वभूमेः पृथिवीत ईश...॥३।३।८।। ङेर्योऽर्घपादातिथिदेवतान्तात्..।।३।२।१४।। ङोपाच्च वैकं द्विचितुस्तरितः सु.॥२॥३५॥ ? याजकाद्यैश्च इंसिर्भयाद्यैः // 1 / 4 / 3 / / ङोऽर्थश्च सूत्रात् तत आगातश्च...।।३।१८।। ड्यांड्यण्ययञ्यो लुगथास्य...।।१।३।६।। ड्यांम्यंशतो डौ नरि ना...।।१।२।३।। चरड्डसो रूप्य च व्याश्रये तु...।।२।३।८॥ चूडास्वग्र्योत्थापनतोऽण्यच्छ....||३।२।४।। चौलादितो लुक कुरुकुन्त्यवन्तेः...|२।३।१४।। च्चिस्तविकारादिह व्यायचो...||३।३।१३।। छो वा महेन्द्राच्छतरुद्रतस्ता...।।२।४।७।। जन्वसेष्टोऽनाचमिकमिव..।।३।४।१३।। जल्पाट्टिदाकः त्वरगिजिगंसु...।।४।१।१४।। जातीय मासैकभृतौ कृतात्.।।१।४।१०।। ज्ञाग्लार्हशक्कंसहलभ्रमार्थे.।।४।१।१९।। मन्तस्याग्दी? वा क्रमः..।।४।१।१।। टान्तेतरेऽसीन्दुकळदिकाभ्यां..।।१।३।४।। - संस्कृतं कूपधतोऽण् कुल..।३।२।१२॥ (टैकत्व आर्ति ऋणे..)।१।१।९।। टेनातो भ्यै यः कात् स्सुभ्ये .... // 1 / 2 / 13 // . ठञ् संख्यादेश्चार्हादश..||३।२।१।। ठञ् सीरहलाद वोढा स न .. / / 3 / 1 / 12 / / ठण् कर्दमाद् वा शकलाच्च..।।२।४।९।। ठण् हस्त्यनञ्धेनुकवच्यचिता..।।२।४।३।। ठेन्व्याद्यचोऽतोऽस्य न वेति...।।३।३।९।। डतेत्यसौ वा ग्रहणेऽप्यवृद्धेः...।।३।२।११।। णोऽन्नं च लब्धा ख यथा...||३।३।६।। तन्नाम राज्ञः सकलोऽबि राष्ट्रवत्..।।३।१।१०।। तरुप्तवेव निर्धार्यतः किन्तिडे...॥२।३।२।। तातांझथास आथांध्वमिवहिमहिङो..॥४।२।१०।। तारौरस: श्यादियतो म्विनाज्झ..||२।२।११।। तिकादेः फिजाद्यादापौत्रदितोऽये...।।२।३।१६।। ति गासिनवामोऽसृपो वेष्टलो.. // 4 / 2 / 14 / / तिङोऽशे ज षष्ठाष्टमाट्टणीक..॥२।३।११।। तुर्यस्तुरीयो बहुपूगसङ्घाद्..||३।३।४।। तुल्यास्यप्रयत्नः सवर्णः..॥१॥१५॥ तेऽन्वादेशे वा सुत उ पद...॥१।२।१७।। त्वामामा तद्वये वा म्नौ.. // 1 / 2 / 17 / / दक्षिणाकुतः पुरस्त्यणौत्तराहः..।।३।१।४।। दामाङ्स्थासागापिब्हाकाम्..।।३।४।२१।। दा) त्रपां देङ् दिगिर्नाम्नि..||३।४।६।। दित्यकालेऽहलेऽवत्सगव्या...||२।१।५।। दीर्घाच्छ वाज्माड इद्रिर्यमि..॥१।१।१२।। . दीर्घा कि शे पुंस्त्र चि...।।१।१।८|| दीर्घोऽसुपो र्वीग्घलिभूत्...||१।२।११।। दृढादितोऽण्यट् च पुरोहितादे....॥३।३।५।। द्वन्द्वे च तिकादेस्तेषां स्त्रपरैः..।।१।२।२३।। द्विवेष्ट मूर्धाक्षि च सक्थि..।।१।४।१३|| द्वैप्योऽन्वय्वि ग्रामात्...||३।१।३।।