________________ Appendices : uffyrenfor II : Index of Verses in the PGBV Main // 2 // मूलस्थपद्यानामनुक्रमणिका // Text अघोभगोभोर्वशि गिद्य....॥१।१।१५।।* कङ्क्सौ समानान्यतदो दृशोऽपी..।।४।१।१।। अचालिताः प्रतीतार्थाः // 11 // 3 // कण्ड्वादि यक् क्यङ् च करोति..॥३।१।४।। अज्झोऽतुरन्यत्र न वा .... // 1 / 2 / 2 / / कलापितोऽणिन्निति शौनकादे..।।२।४।११।। अण् योऽचि गोद्वेः पिदिहाण...॥२।४।१॥ कहिस्स्मिदीप्कम्प्यजस्तमो रो...।।४।१।१३॥ अदेशेऽन्तरो घ्नोऽयनस्याः...।।१।२।६।। कः प्रत्युपात् सुड् वि चतुष्पदि...॥३।४।१५।। अध्यर्धमर्धादि च पूरणं षा....॥१।४।४।। कार्मुककाले. कार्यं देयं..॥३।२।२।। अनगिदृदृतेऽशासाऽज्भाषां..।।३।४।७।। कालोऽस्य सोढः स निवास देशः...||३।४।१५।। अल्प्ये हलीदा क्तिवि लुक्सनो वा // 3 / 4 / 22 // किंलिप्स्यजे व्यद्यतनोपहासे..।।४।२।६।। अवहरन्ति च सम्भवतीति..।।३।२।९॥ कीत्तीद्दोसोमास्थां शाच्छो वा..।।४।१।२।। आदक्षिणादाहि च दूर उत्तरा...||२।३।६।। कुमारशीर्षाट्टसमोऽण् चरो वा...।।४।१।७।। आवश्यके कर्तुरिवाद् व्रते णिन्...॥४।१।१०।। कुल्माषतोऽणिद् वटकोऽचितादे..॥३।३।७।। इंकृता रैच्यविष्णौ सुषासोषसो..॥२।१।२।। कुशलस्य परस्यानुशतिकादे.....।।२।२।८।। इगयणि युवसङ्ख्यडीनामह...||२|१४|| कृपानीततस्तौ नराख्याच्च चादी...||२।३।४|| इच्छासु लोट् तुञ्च समे लटीतो...॥४।२।८।। कौपिञ्जलाद्धास्तिपदाद् वहिवा...॥३।१।१३।। ईयायनेयियुच्छफढा घ आद्या...।२।२।५।। ताप्ये च जृभ्यो युधिशास्दृशाद्धृ...॥४।१।१७।। ई हल्यदो वा भिय इद्दरिद्रो...।।४।२।१॥ क्किमो द्वितोऽथाभिविधौ तु...||४|१।४॥ उशनोशननंत्वनडुच्च...॥१।२।१९।। क्यचीदोऽशनात्तुं धनातृष्यु..।।३।४।१६।। ऋत्सुड्ड्भ्योऽररनप्यदैत्य...।।१।२।१८।। क्यो वा दरिद्रः सिचि वाऽस्व....।।३।४।९।। एतत्तदोदावतु द्विव्युभेभ्योऽश..॥३।३।२।। कादेरवादेरिसुसो वाका..।।१।१।१७।। एऽह्नोऽचि षन्हन्धृतरायणीयो...।।२।२।३।। क्रीतवन्मानतो द्रोर्वयोऽस्मिन्...।।२।४।५।। कखभयेदयुगतोऽपि कर्मठो...॥३।१।७।। कीताप्तसम्भूतकृता अभिज्ञः // 3 / 1 / 6 / / (* अत्र कमेणाध्यायादीनां संख्यानिर्देशः पूर्ववत् / ) NMK. पञ्च.४४