________________ तृतीयोऽध्यायः चतुर्थः पादः 231 पल्पूल पवनलवने दौर्बल्ये सारकृपपस् तथा / कुमारक्रीडायां पैशुन्ये सूचः वासोपसेवायाम् // 120 / / सभाज प्रीतिसेवायां भाज पृथक्कर्मणि तु / शीलो उपधारणेऽतङ् तु पदस्त्वन्वेषणे मृगङ् // 121 / / संग्राम शूरवीरौ द्रुसूत्रोऽर्थन्मूत्र अंस तु / पारतीरौ पुणो भक्ष सुखदुःखे रसो व्ययः // 122 // युद्धविक्रान्त्यवमोक्षयाञ्चा श्रवण लक्षणे / समाप्तौ चूर्णः पारुष्ये तत्क्रिया स्वाद चेतसि // 123 / / अञ्च दृष्ट्युपसंहारे दण्ड दण्डनिपातने / कत्र गात्र तु कौटिल्ये कुहन् विस्मापने तथा // 124 / / छेदोंऽसस्तु समाघाते स्थूलडु परिबृंहणे / चित्र: चित्रकृतौ दृष्टौ सत्र सन्तानकर्मणि // 125 // गर्व माने डु लाभक्षिपौ मिश्र सम्पर्चने छिद्रको तु भेदो स्तुतौ / स्तोम संसर्गपापे पुटाघे तथा रूप रूपक्रियायां गृहीतौ गृहन् // 126 / / जलवटेदितौ अज् वा प्रकाशनविभागयोः / वर्ण वर्णक्रियादौ तु अङ्कोऽङ्ग पदलक्षणे // 127|| वा युज् यतः संयमने शिषोंऽशे वेः स्याद् विशेषे तृप प्रीणने तु / वियोगसम्पर्चनयोः रियो ली द्रवीकृते क्षेपण ईर खिच्च // 128 // मी आङ्सदः खित् परितर्कणे जुषः श्रद्धोपतापे तनु कित् तु दैर्घ्य / प्राप्तौ भुवस्तङ् दृभ श्रन्थ ग्रन्थ सन्दर्भणे आप्लु तु लम्भने स्यात् // 129 / / वचो वृजी जः वृषु चीक श्रीका वृषा सह स्युः छदगर्दमर्दः / श्रथ कथ हिंसि तु मन् च मानः कठिम॒जुर्दीप्तिभये चूदी भृदी // 130 // तिर्तङ् मृषोश्छुन्धवदार्चमर्चाः प्री तर्पणे धूञ् तप कम्पदाहे। हेतौ क्रियार्थाच्च सुपस्तदर्थे एभ्योऽतङाना अदितश्चुरादित् // 131 // चुरादिः // त्भूत्चुत् प्रत्याहारार्थः // धातवः समाप्ताः // सुपस्तदर्थे / अत्र गणः - सूत्रं च मुण्डं लवणं च मिश्रं श्लक्ष्णं करोत्येव व्रतमतङ् वा / आचक्षते तांश्च करोति वा तान् तैस्तैरतिक्रामति सत्यवेदा- / थानां तथाऽऽपश्वतरौ तकौ लुक् श्वेताश्व गालोडित आह्वरादित् // 132 / / षट्पदी //