________________ 230 पञ्चग्रन्थी व्याकरणम् पुंसोऽभिर्दे बुधि षट्ट घाते संघातनीले पिडि पूल वर्णत् / हर्षे रभि भिन्दि दह व्ययं तु नाशे तुप स्वक्ष भृतौ बलोऽतङ् // 109 / / मत्रितत्रिचितकुत्सवन्चुरुतर्जभर्त्स तु दस् दशर्मदस् / निष्कतूण परिमाणपूरणे गृयु मन् विद इहेदृशः क्वचित् / गृ विज्ञाने वस्तगर्दिने किक्कहिक्कग् वितर्के स्यमः // 110 / / कूण सङ्कोचने स्यात् समालोचने गूर कुस्मो लल / भ्रूण ईप्साशयोः कूटपक्ष प्रतारणस्तुतौ / छेदन आलम्भने त्रुटदलौ संहतौ / स्याद् दु:तापने कुड्तड: षट्पदी // 111 / / चर्च मुच त्रस अञ्चु भर्जार्ज ज्ञा जस लिगि मुद कृप च्यु पाठ / प्रयोग निषेध विशेष श्राणन यत्न नियोग चिन्ता चित्रण / संसृजि कल्कन हासे वित्तिनिमीलनयोः चर कण षट्पदी // 112 // मोक्षस्तसिभूषौ दूषोऽन्धस अर्हः शब्दे जभि रोगेऽम् चुक्को व्यथने वा / . आविष्करणे क्षित् शब्दे लिश शिल्पे. स्नेहे वश यद् वा स्यान्मारणच्छेदे // 113 / / स्वादे रकलक रगलग पशपसपष बन्धने चट स्फुट तु / सङ्के घट हिंसाः शृधु प्रहासे घुष विशब्दे // 114 // आङः क्रन्दे च सातत्ये प्रतियत्ननिकारयोः / यती निरः प्रतिदाने आस्वादस्तु सकर्मकात् / दल पुरीश् रुजम् त्वसुग्रहणे पुष धारणे // 115 / / षट्पदी // पट पुट लुट पुष् स्यात् तुञ्जि पिञ्जि त्रसिश्च घट घटि कुशि लुञ्जि मोक्ष भञ्जि क्रसि वृध् / णद कुप गुप लोढ़ः तर्क वृद् वह वल्ह लघि दसि बंहिद् विच्छ धूप चीव णि स्वादः // 116 // इतोऽदन्ताः // वाक्यप्रबन्धेऽत् कथ खेट भक्षे गोमोपलेपे पतु पाल खिद् वा / महध्वन स्तेने अगवेषजजः खोटं चह सूत्र वरस्पृहौ स्तः // 117 / / भाम क्रोधे चट पट ग्रन्थे कूटकेतश्रामाः / कुल गुण आमन्त्र्ये स्युः संख्याने वा कलगण स्यामः // 118|| रह त्यागे स्वर क्षेपे मेघ शब्दे गद स्तनौ / वेल कालोपदेशे तु प्रतियत्ने चरः पषट् // 119 //