________________ 229 तृतीयोऽध्यायः चतुर्थः पादः डुक्री द्रु भी प्री यु षि बन्धने क्नु धु[षि] पाके आप्रवे श्री स्कु पू तु लू स्तृञ् / धू कम्पने कृद्रु तु जिद् वृञस्तिङ् ली श्लेषणे ल्यी च मृ शु स्पृगो हः // 96 / / ज्या ज़ तु नृ गघथ रेषणे री ब्ली व्री तु भर्से च भृ पूरणे पृ च / ज्ञा ग्रन्थमन्थोऽशमुषक्षुभोऽथ कथक्लिशू तूध्रस उञ्छने स्यात् // 97|| व्री वरणे भी भरणे बन्ध मृड तौ श्रन्थ मोचने स्यात् / गुध विष रोषवियोगे कुष निष्कर्षे मृद क्षोदे // 98 // क्षिषु णभ तुभगाभीक्ष्ण्ये इष खच भूतौ / पुषप्लुष स्नेहेऽतङो वृङ् संभक्तौ तङानाः क्यादयश्चेति // 99 / [क्यादि // ] स्तेये चुरलुण्ठौ स्फुटिः परिहासे ओलण्डि दुल उत्क्षेपे शुल्क तु सर्जे / क्षान्तौ कृपिरल्पत्वे पुट्ट पुल वृध ऊर्जायुषि धूसः कान्तिकरणे स्यात् // 100 / नक्क धक्क पसि नाशने कुण्डि कुन्द्रि जसि रक्षणे पलः / वेष्टने गुडि: बलो भृतौ तथा शोषणे शुठि लडोपसेवने // 101 / / पूरणे प चलनेऽपि घट्ट पषोऽर्दने लुबि तुबि चुबि / चल वारणे छद खट्ट संवृत्तौ हर्षणे श्रथ तु मूल रोहणे // 102 / / संशब्दने कृत तु शूर्प माने दाने श्रणः पूर्व निकेतने तु / गर्धाभिकाङ्क्ष क्षजि कृच्छ्रजीवे आलस्यभव्ये शुठि भण्डि चेष्टौ // 103 / / व्ययुत्सर्गे तुलोन्माने प्रतिष्ठायां तिलो धृषन् / व्रज मार्गणसंस्कारे सर्जने ज्ञापि मिज्यमः / परिवेषे चपः कल्के पर्डि पिण्डिश्च षट्पदी // 104|| चितिमडिचुदो लक्षं भक्षः श्लिष प्रथ सञ्च उ बुलमुटतङो प्रक्षश्छर्दः कुविच् क्षलवण्टिरु / विल कल ङितो मानच् पूजः कडिच्खडखण्डयः घृ तिज नट तु ष्टुप सान्त्वस्त एव रुट वृषः // 105 / / कीट चूर्ण वच टङ्किपत्रयः वर्णचूर्णजुडपुस्तपुश्च थौ / स्मिङ् स्मिटाट्टेलषट्ट नादरे वर्धपिच्छचुटचुट्टिकुट्ट तु // 106|| तिल मिन्दि स्निहाः चक्कचुक्कपीडाः / श्वठश्वठिपिश्चर्चपथिश्वर्तशठस्त्वकेड तु दिवन् // 107|| गजमार्जह्लपम्लेच्छश्वल्कवल्कपरिघ्रिजः / लुष बर्ह जस क्रथ षट्ट तृजि त्विजिशोगृ // 108 / /