________________ तृतीयोऽध्यायः चतुर्थः पादः 227 लिहोऽदि तद्वा हु पृ दानपूोरोहाग्जिभीहकसघृभसद् वा / ही तु त्रपायां किकितौ तु वित्तौ विषघ् जनेऽरन्तुर धन् परस्मै // 68 // विजिर्विचिर्वा भिदि पोषणेऽपि णिजि तु ढाप्तौ विष्लु टुटुंतो वा / दाञ् चाञ् नृञौ मा तु विभाषिताः स्युरोहाङ् गतौ माङतङानिनौ वृत् // 69 // अदादि / दिवु श्रुवुख्वा षिवु तन्तुसन्ताने ष्ठिवुक्षिवुष्णस्तु निराकृतौ तु / त्रासद्प्लुषाढ़े ऋथि पूतिभावे दो खण्डने छाव तनूकृतौ सौ // 70 // षोऽन्तक्रियायां जषज्वृष जीर्णे त्रसीः नृतीः प्लीमतिमष्टिनार्दै / व्रीडक्षिपौ स्तो युद्य हिंसने तु ईषख् स्फुटस्तु व्यध ताडने तु // 71 / / षहषुहौ तथा शक्तौ संसिद्धो राधसाध तु / षुषः शुषो दुषो मर्षे .शकनालिङ्गने श्लिषः // 72 // ष्विदा क्षुध शुन्धषिधौ रधो दृपो हिंसाविमुक्त्योस्तृप तु द्रुहष्णिहः / मुहो णसोऽप्युद्गिरणे ष्णुहर्शसु क्षमू क्लमुश्चापि मदी दमुः श्रमुः // 73 // भ्रमुस्त्वतृप्तौ च तमुच् , गृधुश्च रुचुवृशुभशुलुटः क्षुभश्चः / हषस्तृषः क्रध्रुषकुप् तु लुभ्रतुभोञ् नभः स्तो गुप आकुलत्वे // 74 / / प्लुष दाहे कुश क्लेशे क्षेपे डिप विसऽसु तु / यसु यत्ने जसु मोक्ष तृभूस्तम्भे रीज् तृषा वसु // 5 // घृषपुसी विभागे तसुदसु तु उपक्षये वृशो वरणे / युम रुप लुप तु विमोहे तुस मुस उत्सर्गखण्डनयोः // 6 // उच समवाये जिमिदा स्नेहने आर्दे क्लिद मसी माने / ष्टुप समुच्छ्राये कृश तु जिक्ष्विदा मोचनेऽतद्वत् // 77|| षू गर्भमोक्षे वरणे पुनः प्रीङ् लीङ् श्लेषणे रीङ् स्रवणे क्षये दीङ् / धीङादरे मीङ् हनने गतौ डीङ् तापे तु हृडोदित ईङ् यदख्माङ् // 78 / / प्री पीङ् पाने बुधाऽनापुरी तृप्तौ दीपी कासृ द्युत तु जनीः सूरीग् वा / तूरीगूरीग् पुनरपि तूरीघुरीग् विद् सत्तायां मन सृजः ज्वरीर्वा शुघुघुङ् // 79 // क्लिशोपतापे वरणे वृत् स्याद् युजः समाधौ लिश अल्पभावे / कामे रुधोऽनोः पत वेश्वरत्वे दाहे चुरी तङ् णह बन्धने तु / शकस्तृषो रञ्जशपोऽपि पूतौ ईशुश्चिरिश्चेति विभाषिता वृत् // 80 // दिवादि // "अभिषवे षि शि बन्धनिशामनयोः धूञ् कृञ् कम्पे जितो चिवृपरि डुमिञ् / स्तृबृहौ तिक रिक् च कृविच् चिरि दाश षघ द्रुह रिञ् जि गितः // 81 / /