________________ 226 पञ्चग्रन्थी व्याकरणम् क्वथः कथे मथे बलः क्षरभ्रमुच्चला हलः विलेखने टलट्वलौप् हुलच्झलच् पत्तृ व्यथेषु // 54|| ष्वल स्थाने जलो धान्ये णलो गन्धे पुलस्तते / कुलो बन्धौ वमुर्वम्वा द्विदुद्गारेऽतङानिनः // 55 / / षहः क्रुशो बुध्वारसुरमुयमु रु हकशख्-। सम्पर्चने पृचः षड़ हिंसने शाड शातने // 56 // वृत् हिक्काव्यक्ते शब्देट् शृधुमृधु उन्दे असाऽष दीप्तौ तु / वेण च चते चदे टोः यावृत् खनु धावु हभृवृञ् धृञ् // 57 // अलजु प्रोथै पर्याप्तौ उबुन्दि नृ निशामने / माह माने लषः कान्तौ णि णेदृ [तु] कुत्सने // 58 / / चीपरिवृझषचीवृ आदाने याचु पूजने / मिमेदृमिधुमेधुमेवृलः पथः बाधने // 59 / / रञ्ज रागे शपाक्रोशे चष भ्लक्ष तु भक्षणे / दाशृदासृ तथा दाने रेटस्तु परिभाषणे // 60 // गुहू संवरणे दान खण्डने ज्ञान तेजने / णीञ् प्रापणे त्वष दीप्तौ अचु अञ्च व्ययागमौ // 61 / / भेष भये श्रिञ् षच सेवने तु भ्रषस्तु कम्पे डुपचष् तु पाके / यजो वहो व्यञ् वरणे टुवप् हृञ् वेञ् स्पर्धतन्तौ तु विभाषिताः स्युः / वसो निवासे वद व्यक्तवाचि टुओश्वि गत्यामतानिनो वृत् // 62 // [षट्पदी // ] [भ्वादि] अदो हनः षंसिषसौ शये स्तः वशाक्रान्ताभिगमे यु मिश्रे / क्ष्णु तेजने णुष्णु तु टुक्षु भक्षुः शब्दे तु इण् वीखिक तु स्मृतौ भाट् // 63 / / माः ष्णा: ख्याः प्साऽदिवा या द्राख् दाप् प्रा लवनपूरणे / श्रा पाके रक्षणे पा रा लाऽऽदाने वृज्विदोमृजूः // 64 // वचो भुव्यसु रुदिर् स्यात् श्वसाऽन प्राणने जिष्वप् / भक्षे जक्षञ्च चकासृ दित् जागृ शासु दरिद्राच्च यङिदेकेऽतङानिनः // 65 // चक्षिङ् सुवाचीरकसिखिदासः षूङ् शीङ् वृजीरिड्वसपाठवस्त्रे / आशासुइष्टौ णिसि चुम्बने स्यादीड स्तुतौ ईश तु ईश्वरत्वे // 66 // दीधीशिजिद्युपजिपृचीन्तु वेवीङ तुल्ये ढुङपह्नवे तु / शुद्धौ णिजि ष्णु द्विष ष्टुब्दुहो ब्रूञ् पा रक्षणे उपचये दिहस्तु // 67 // /