________________ तृतीयोऽध्यायः चतुर्थः पादः आयासे द्रा शैथिल्ये अथि मेधृ निपातने / ऊयी तु तन्तुसन्ताने वलवल्ल तु संवृतौ // 40 // घूदक्षेवृतिपृ क्षारे राधृलाधृ समर्थने / / कको लौल्ये वृको वर्णे स्युर्जभीजभजृम्भयः // 41 // युतृजुतृकचिवर्चभ्राजभ्रेज़ च कासृ भास तु वा / घिणिघुणिगृहग्लहूघृणि ग्रहणे स्तुत्यां पणपनौ तु // 42 / / आर्या // ककिवकितिकृढौकृत्रौकृध्रजवस्कचररघिलघिटीकृत्रतिशेलु श्रकिच्युङ् / श्वकिटिकृमदिसेकृहेषज्यपेशृणश्लकिस्रकिवयोवृशौणघिखञ्जिहिण्डि-॥४३॥ पवपयवयरेपृप्लिहिईजेऽजिमेपृश्वचतयचयएफुप्लुङ्मयाटाभिगाङ्द्रुङ्ऋजरयदयअंहिप्लक्षपत्तृध्रुपंडिखविरविरभिरेभृहादपर्दाभिकल्लाशचलभिभडिक्नूयीडुकृजुङ् णेरेषगुध्वुकुङ ङिति एते धिकृरास्कासृ भाषाः // 44|| श्लोकृलोगोषहुडिपिण्डयो भल्लवल्ह द्राड ध्राट्वलभलग् च शल्भशीभृशाइकत्थश्लाघलो हदो विडुष्ठि षट्पदीद्वयं चारु // 45 // द्युतशुभरुच दीप्तौ जिष्विदा मोचने स्यात् रुटलुटलुठ घाते जिमि वा स्नेहने स्यात् / णभतुभगथुश्रम्भुक्षुभ्र वणे स्थिता स्यात् इह घुट परिवर्ते ध्वंसुभ्रंशुश्च अंसुः // 46 // मालिनी // वृत्स्यन्दूवृधुसृधुघोऽपि सामर्थ्य तु कृपू गणौच् / घटस्खदप्रथो दक्षग् क्षजिष् दुःखव्यथौ भये // 47 // क्रदकदिक्रदिकन्दिल कुपायां क्रप जित्वरः / प्रसस्ततौ प्रदे मर्दे षितश्चापि तङानिनः // 48 // ज्वरः कगेवन् गड सेचने नटः हुगे ह्रगे संवरणे स्थगे षगे च / हेड वेष्टे हसने कखे तथा लगे रगे द्वावपि सङ्गशङ्कयोः // 49 // वटभट परिभाषे ष्टक च त्वच विघाते कणागरण अक गतौ / अणवणषण दाने श्रथ चन कथच् क्लथ कूथग् // 50 // दीप्तौ ज्वलोऽन्ये चलने चलि हल स्यान्न नये मारणतो षद्लुक् तु / ज्ञा ऊर्जने षद्मदी हर्षदैन्ये जिह्वाविलोडे लडि स्वन्वनौ तु / श्रा दृ स्मृ पाकेऽथ भये स्मृतौ मित् // 51 // पञ्चपात् // 51 // जषुजनक्नुसुरञ्जि च मन्ता ज्वल्ह्वलनम्ह्मलग्लावनुस्थावम् / वा अप्रतिकं चम अमो शमोऽदृक् स्खद्यमितोऽव परेः परिवेषे // 52 // फणो गतौ वृत्वतङानि राजः भाजृट् तथा भ्राशृट् च श्लाखुटुर्दित् / तङानिनः स्वन्स्यमुतौ स्वनोऽत्र षमष्टमौ विक्लवभाव इष्टौप् // 53 / / / पञ्च.-२९