________________ 224 पञ्चग्रन्थी व्याकरणम् म्ना अभ्यासे कटु कार्कश्ये चेष्टायां उदि आवृत्तौ / कूलो मूलप्रतिष्ठायां जभजंभी तु मैथुने // 26 // रोड रौड़ शिट तौड़ षिट सूक्ष्य अनादरे ट्वौ स्फूर्जा वज्रनिर्घोषे स्याच्चह: परिकल्कने / एठहेठ विबाधायां बलात्कारे हठो रुठ उपघाते लुठो लुठि च शलक्रीड़ हुषुघृषुः // 27 // तक्कककखहसाः गग्घघग्घश्च परिदेवने / क्लिदिन् षणस्तु सम्भक्तौ मन्थप्रेषे खजश्चटः // 28 // माङ्गल्यशास्त्रे च षिधू गतौ च एभ्योऽतङाना मचमुञ्चि च दाने / श्रन्भु प्रमादे दध धारणे स्यात् ह्लादी सुखे भन्दि च गाध ग्रन्थे // 29 // प्यैङ् प्यायी वृहिमहि दक्ष स्फाय्येध वृद्धौ शोके मठि कठ्याहासे ष्मिङ् / भाम क्रोधे कुक वक आदाने स्तः दैन्ये ग्लै पृ पचपचि वृक्लीकृत्यम् // 30 // जलधरमाला // स्वर्द स्वद स्वाद तु शिक्षदीक्षः ऊहो गुपः पूङ् स्यदि वन्दि गाहः / . स्पर्धश्चाकिरेकृशकि तिजक्षमूष् मञ्चिमानौ वठिवण्डिवेष्टाः // 31 // तेपृकेपृशलगेपृटुवेपघटकम्पयः / प्रुङ्लभौ गल्हगी च ईहचेष्टौ लजिभृजील् // 32 // वल्भग्लसुग्रसवस्तु ईक्षेषलोकृलोच् च / नाथूनाधृविथैवेभिक्षास्तु तेवृदेवृ तु // 33 / / देतायत्रैङ: तुडितण्डि ताडने कोपे चङि घसिघुषिच्कमुर्मुदः / / श्वैत्यै श्विदि वा वृतु लोटने कलः क्ष्मायी विधूनने मकि मण्डने त्रपूषुः // 34 / / कडि क्षीब मदे स्कुदि आप्रवणे ग्रथिवंकिणसाः कुटिले [च. भुजो] / शडि भुण्डिरुजाभरणे मलमल्ल वृतौ कचमूबध बन्ध इषौ शसि साङ् // 35 / / कुर्दखुदौ उर्दगुर्दास्तु क्रीडायां ज्यै व्रते स्त्र च / प्रसादे स्नेहने वर्षः ष्टुभ स्तम्भे भये भ्यसः // 36 // ष्टभिस्कभि प्रतिबन्धे हेहोड़ अनादरे / अधाष्ट्ये क्लीबृ गल्भस्तु वषड्पूर्णघुण भ्रमे // 37 // दाने ददो वृक्ष वृतौ रभस्त्वाप्लाव्ये तु वाड़ धुक्षधिक्षक्लेशाः / अन्वेषणे ग्लेष तु गण्डि मन्थे निद्राक्षये द्राह कुडिस्तु दाहे // 38 // प्लेवृषेवृसेवृकेवृखेवृगेवृपेवमेवृग्लेवृम्लेव च शीक सेचने तु / वहजेह च हलवेहयत्यमुष्य अंसने तु लम्बितृङ // 39 // समानी //