________________ तृतीयोऽध्यायः चतुर्थः पादः 223 द्रमकटहयहर्या अड्डतुडतृक्षाजाः चपिरिविरविधिवि शोणपेल्सृभेषः / / हुड्डशवषिधुवेलुखेलुखेलुकेल[श्च] श्वेलः रफरिफदुशुऋच्छपेलुफेलुम्लुचुश्च // 12 // मालिनीत्रयम् // पैशकनीपिशपेस च रंहि: वञ्जिवजव्रजचेलशुरुण्ठिः / त्वञ्जिररिवेह[श्च] खलश्च वल्लाः धोर्ऋतिलव्रजसेल च लुण्ठिः // 13 // हयहर्यः शशफक्कशवाः ध्रजस्कन्दिरवत्सरखोलुदुपाश्च / तृक्षखजीशुकखोज्रसृप्लृषिधगम्तृखनोऽस्य हिसेश्च सर्वार्थों // 14 // तोटकद्वयम् // कुथिपुथिलुथिमान्थक्रथपादत्रयोर्वी मथिखदतुजितुर्वीषिन्भुथुर्वीसृभूहिर् / शवपिवतुपतुम्पक्रम्प दुर्वीदुहिर् स्यात् लुवितुवितुजिधू/तुम्फतुर्वीत्रुफश्च // 15 // मालिनी // कषशिषऋषसुंरुसृम्भुवः झषचषनषजर्ससंसुवः / रुषरिषशिषजूषचूषचषतुफसृभुजिफलादलास्फुटिनः // 16 // भद्रिका // वर्हतुहिर्शमुगित्यश्च शब्दे नर्दवनध्वनगर्दघुषिर्च / / कर्दवणध्वणबुक्कणमूनिक्षीजवजष्टनकूजवृहिर्वा // 17 / / म्लेच्छमदौ पठजल्पजपाः स्युः द्राक्षिरपौ लपजर्जरठाश्च / ध्राक्षिगजौगृजगर्जमुजाः स्युः ध्वाक्षितुष लसचर्चठाश्च // 18 // दोधकद्वयम् // रसमिसक्रिक्विदाशुगाः ख़णवणभणरुर्फकैकणाः / लटविटकुचगैणदाऽणरैसृजिमृजि च णमुजगुन्दयः // 19 // भद्रिका // ष्ट्यैस्त्यैक्वणध्मास्तु च घुट्यमोऽडना गुर्वी चल्येतृत्वगि कम्पने स्तः / दुर्जीवने व्याधिकठौ तकिश्च कर्जव्यथे वर्ज चर शौतृ गर्वे // 20 // उच्छी विवासे चप सान्त्वने स्यात् शै झै तु पाके चरणे कटेवरू / युच्छ प्रमादे वट वेष्टने दै प्रै स्वप्नदृप्त्योः हट चदि दीप्तौ // 21 // कुच्कुञ्चर्हाढ तु वक्रतायां ष्वन्जश्च दैप्शुन्धसुधाः डुनन्दि / श्च्युतिश्र्चुतिर्च क्षरणे यगादिर्भटवृतौ शीलणिशौ समाधौ // 22 // धाराधृ हूछे ज्ञटमक्षपूलशोणक्षमवृवृषुश्लोक भासने जुत अल्पे चुटचुड्डचुड्यः [पर्बफर्ब] पूर्व पूरणे // 23 / / मुर्वीचुच्यावभिषवे जषो रोगे कुब्याच्छादने कितमठ वासे / हीच्छयौच्छ सम्बद्धेऽशे विदि षट् वर्णे नीलः / कुप्यालस्ये जजजजि युद्धे स्याताम् // 24 // जलधरमाला // युगिजुगिवुगि वर्जे वक्ष रोषे इदीशे षपषच समवाये तूष तुष्टौ कुडु चुद्यै / ष्टिवुक्षिवु निरसने क्षमीलस्मीलमीला निमेषे हिविदिविजिवि तृप्तौ तूल निष्कर्षणे स्यात् // 25 // मालिनी //