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________________ 60 कातन्त्ररूपमाला रम्भा श्रद्धाया: पराणि ङवन्ति वचनानि यै यास् यास् याम् भवन्ति यथासंख्यम् / रम्भाभ्याम् / रम्भाभ्यः / रम्भायाः / रम्भाभ्याम् / रम्भाभ्यः / रम्भाया: / रम्भयोः / रम्भाणाम् / रम्भायाम् / रम्भयोः / रम्भासु / एवं शाला माला दोला भार्या कान्ता अङ्गना वनिता जाया माया प्रभृतयः / सर्वनाम्नस्त्रिलिङ्गत्वात्स्त्रीलिङ्गे। स्त्रियामादा // 215 // स्त्रियां वर्तमानादकारान्तादाप्रत्ययो भवति विभक्तिपरे / सर्वा / सर्वे / सर्वाः / हे सर्वे / हे सर्वे / हे सर्वाः / सर्वाम् / सर्वे / सर्वाः / सर्वया। सर्वाभ्याम् / सर्वाभिः / ङवत्सु / सर्वनाम्नस्तु ससवो हस्वपूर्वाश्च // 216 // सर्वनाम्नः श्रद्धाया: पराणि डवन्ति वचनानि यै यास् याम् भवन्ति यथासंख्यं सह सुना ह्रस्वपूर्वाश्च / सर्वस्यै। सर्वाभ्याम् / सर्वाभ्यः / सर्वस्या: / सर्वाभ्याम् / सर्वाभ्यः / सर्वस्याः / सर्वयोः / आमि / सुरामि सर्वत:। सर्वासाम्। सर्वस्याम्। सर्वयोः। सर्वासु। एवं विश्वादीनामेकशब्दपर्यन्तानां रूपं ज्ञेयम् / अल्पादीनां तु सप्तानां रम्भाशब्दवत् / अल्प प्रथम चरम तय अय कतिपय अर्य एते सप्त / द्वितीयाशब्दस्य तु भेदः / द्वितीया। द्वितीये। द्वितीया: / हे द्वितीये। हे द्वितीये। हे द्वितीया: / द्वितीयाम् / द्वितीये। द्वितीयाः। द्वितीयया: / द्वितीयाभ्याम् / द्वितीयाभि: / ङवत्सु / रम्भा + यै = रम्भायै, रम्भाया:, रम्भाया:, रम्भाभ्याम् / रम्भा + ओस् ‘टौसोरे' सूत्र से आ को ए होकर संधि होकर रम्भयो: बना। रम्भे रम्भाः / रम्भायै रम्भाभ्याम् रम्भाभ्यः. हे रम्भे ! हे रम्भे ! हे रम्भाः ! रम्भायाः रम्भाभ्याम् रम्भाभ्यः रम्भाम् रम्भे रम्भाः / रम्भायाः रम्भयोः रम्भाणाम् रम्भाभ्याम् रम्भाभिः / रम्भायाम् रम्भयोः रम्भासु इस प्रकार से ऊपर लिखे हुआ शाला आदि शब्द चलते हैं। सर्वनाम तीनों लिंगों में चलते हैं अत: स्त्रीलिंग में 'सर्व' शब्द आया। . स्त्रीलिंग में वर्तमान अकारांत शब्द को 'आ' प्रत्यय हो जाता है विभक्ति के आने पर // 215 // सर्व+ आ =सर्वा + सि-श्रद्धा संज्ञा करके श्रद्धाया: सिलोपम्' से सि का लोप होकर सर्वा बना। ङवान–डे, उसि, डस. ङि इन चार विभक्तियों को ङवान कहते हैं इनके आने पर कुछ अंतर है। सर्वा + डे सर्वा + ङसि, सर्वा + ङस्, सर्वा+ङि। सर्वनाम श्रद्धासंज्ञक से परे जो ड्वान् वचन को यै, यास्, यास्, याम् आदेश हुआ है उसमें क्रम से विभक्ति के पूर्व में सकार एवं पूर्व स्वर को ह्रस्व आदेश हो जाता है // 216 // सर्व + स्यै = सर्वस्यै, सर्वस्या:, सर्वस्याः, सर्वस्याम् / सर्वा + आम् ‘सुरामि सर्वत:' १५५वे सूत्र से सु का आगम होकर सर्वासाम् बना। सर्वा सर्वे सर्वाः / सर्वस्यै सर्वाभ्याम् सर्वाभ्यः हे सर्वे ! हे सर्वे ! हे सर्वाः / सर्वस्याः सर्वाभ्याम् सर्वाभ्यः सर्वाम् सर्वे सर्वाः | सर्वस्याः सर्वयोः सर्वासाम् सर्वया सर्वाभ्याम् सर्वाभिः / सर्वस्याम सर्वयोः सर्वासु इसी प्रकार से विश्वा, उभा, उभया, अन्या, अन्यतरा, इतरा, इतमा, कतरा, कतमा, यतरा, यतमा, ततरा, ततमा, एकतरा, एकतमा, त्वा, नेमा, समा, सिमा, पूर्वा, परा, अवरा, दक्षिणा, उत्तरा, अपरा, अधरा, स्वा, अंतरा, त्या, ता, या इत्यादि एक पर्यंत रूप सर्वा के समान ही चलेंगे। रम्भया पाभ्याम
SR No.004310
Book TitleKatantra Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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