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________________ स्वरान्ता: स्त्रीलिङ्गाः द्वितीयातृतीयाभ्यां वा // 217 // द्वितीयातृतीयाभ्यां पराणि डवन्ति वचनानि यै यास् यास् याम् भवन्ति यथासंख्यं सह सुना इस्वपुर्वाश्च वा। द्वितीयस्यै, द्वितीयायै। द्वितीयाभ्याम। द्वितीयाभ्यः। द्वितीयस्याः, द्वितीयायाः। द्वितीयाभ्याम्, द्वितीयाभ्यः। द्वितीयस्याः द्वितीयायाः। द्वितीययोः। सर्वादौ अपठितत्वात् न सुरागमः / द्वितीयानाम्। द्वितीयस्याम, द्वितीयायाम्। द्वितीययोः। द्वितीयासु। एवं तृतीयाशब्दोऽपि। अन्यत्र रम्भाशब्दवत् / जराशब्दस्य तु भेदः / व्यञ्जने रम्भाशब्दवत्। जरा जरः स्वरे वा // 218 // जराशब्दो जरस् वा भवति विभक्तिस्वरे परे / जरे, जरसौ। जरा, जरस: / हे जरे / हे जरे, हे जरसौ। हे जरा: हे जरसः / जरां, ज़रसं / जरे, जरसौ / जरा: जरस: / जरसा, जरया / जराभ्याम / जराभिः / जराय, जरसे। जराभ्याम् / जराभ्य: / जरायाः जरस: / जराभ्यां, जराभ्य: / जरायाः, जरस: / जरयोः, जरसोः / जराणाम्, जरसाम् / जरायां, जरसि / जरयोः जरसोः / जरासु। ये सभी शब्द अकारांत हैं इनमें 'स्त्रियामादा' इस २१५वें सूत्र से स्त्रीलिंग बनाने के लिये 'आ' प्रत्यय करना होता है। सर्वत्र अकारांत को स्त्रीलिंग में 'अद' प्रत्यय करना ही होगा। अल्पा, प्रथमा, चरमा, कतिपया शब्द और जिसमें तय, अय प्रत्यय लगे हैं ऐसे शब्द रम्भा के समान चलते हैं। द्वितीया शब्द में कुछ भेद हैं। द्वितीया+सि= द्वितीया इत्यादि। द्वितीया+डे द्वितीया और तृतीया से परे ङ वान् को क्रम से यै, यास्, यास, याम् विकल्प से होता है // 217 // अर्थात् एक बार स् सहित यै, यास्, यास, याम् होकर पूर्व को ह्रस्व हो जाता है अत: इन चार विभक्तियों के दो रूप बनते हैं यथा द्वितीया + उ = द्वितीयायै, द्वितीयस्यै, द्वितीयाया:, द्वितीयस्याः इत्यादि। ये द्वितीया, तृतीया शब्द सर्वादि गण में कहे नहीं गये हैं। अत: आम् के आने पर सु का आगम न होकर नु का आगम हुआ। तब द्वितीयानाम् बना। शेष सभी रूप रंभा के समान हैं। द्वितीया द्वितीये द्वितीयाः / द्वितीयाय, द्वितीयस्यै द्वितीयाभ्याम् द्वितीयाभ्यः हे द्वितीये / हे द्वितीये ! हे द्वितीयाः !| द्वितीयायाः, द्वितीयस्याः द्वितीयाभ्याम् द्वितीयाभ्यः द्वितीयाम् द्वितीये द्वितीयाः / द्वितीयायाः, द्वितीयस्याः द्वितीययोः द्वितीयानाम् द्वितीयया द्वितीयाभ्याम् द्वितीयाभिः | द्वितीयायाम, द्वितीयस्याम् द्वितीययोः द्वितीयासु जरा शब्द में स्वर के आने पर भेद है व्यंजन में रम्भावत् ही है। जरा+सि=जरा, जरा+औ. स्वर वाली विभक्ति के आने पर जरा शब्द को जरस् आदेश विकल्प से हो जाता है // 218 // ___ अर्थात् एक बार रंभावत् जरे बना / दूसरी बार जरस् + औ= जरसौ जरा + जस् = जरा:, जरस: बना। जरा जरे, जरसौ जराः, जरसः जराय, जरसे जराभ्याम् जराभ्यः हे जरे / हे जरे ! हे जरसौ ! हे जराः !.हे जरसः ! जरायाः, जरसः जराभ्याम् जराभ्यः जराम्, जरसम् जरे, जरसौ जराः,जरसः जरायाः, जरसः जरयोः, जरसोः जराणाम, जरसाम् जरया, जरसा जराभ्याम् जराभिः जरायाम, जरसि जरयोः, जरसोः जरासु
SR No.004310
Book TitleKatantra Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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