________________ स्वरान्ता: स्त्रीलिङ्गाः अथ स्वरान्ताः स्त्रीलिङ्गा उच्यन्ते अकारान्त: स्त्रीलिङ्गोऽप्रसिद्धः / आकारान्त: स्त्रीलिङ्गो रम्भाशब्दः / सौ। आ श्रद्धा // 209 // आकारान्त: स्त्र्याख्य: श्रद्धासंज्ञो भवति / श्रद्धायाः सिौपम्॥२१०॥ श्रद्धाया: पर: सिर्लोपमापद्यते / रम्भा। औरिम्॥२११॥ श्रद्धाया: पर औरिमापद्यते / रम्भे / रम्भाः। सम्बद्धौ च // 212 // श्रद्धाया एत्वं भवति सम्बुद्धौ परे / हे रम्भे / हे रम्भे / हे रम्भाः / रम्भां रम्भे / रम्भाः / टौसोरे॥२१३॥ श्रद्धाया एत्वं भवति टौसो: परत: / रम्भया। रम्भाभ्याम् / रम्भाभिः / डवत्सु / डवन्ति यैयास्यास्याम्॥२१४ / / अथ स्वरांत स्त्रीलिंग प्रकरण अब स्वरांत स्त्रीलिंग प्रकरण कहा जाता है। अकारांत स्त्रीलिंग अप्रसिद्ध है। आकारांत स्त्रीलिंग 'रम्भा' शब्द है। रम्भा+सि आकारांत स्त्रीलिंग शब्दों की श्रद्धा संज्ञा हो जाती है // 209 // श्रद्धा संज्ञक से परे सि का लोप हो जाता है // 210 // अत: रम्भा बना। रम्भा+औ श्रद्धा संज्ञक से परे औ विभक्ति को 'इ' आदेश हो जाता है // 211 // रम्भा + इ 'अवणे इवणे ए' से संधि होकर रम्भे बना / जस् में रम्भा: बना। संबोधन मेंरम्भा +सि। संबुद्धि संज्ञक सि के आने पर श्रद्धा संज्ञक आ को 'ए' हो जाता है // 212 // और 'श्रद्धाया: सिलोपम्' से सि का लोप होकर-हे रम्भे ! बना। हे रम्भे ! हे रम्भा: ! रम्भा+टा टा और ओस् के परे श्रद्धा संज्ञक को 'ए' हो जाता है // 213 // रम्भे + आ 'ए अय' से संधि होकर रम्भया बना / रम्भाभ्याम्, रम्भाभिः / रम्भा + डे, रम्भा + ङसि, रम्भा + ङस्, रम्भा + ङि। श्रद्धा संज्ञक से डवंति अर्थात् डे, ङसि, डस्, ङि के आने पर क्रम से यै, यास, यास, याम् आदेश हो जाता है // 214 //