________________ कातन्त्ररूपमाला रैशब्दस्य आद् भवति व्यञ्जनादौ परत: / रा: / रायौ। राय: / हे रा: / हे रायौ / हे राय: / रायम्। . रायौ / राय: / राया। राभ्याम् / राभिः / राये / राभ्याम् / राभ्यः / राय: / राभ्याम् / राभ्यः / राय: / रायोः / रायाम् / रायि / रायोः / रासु / इत्यैकारान्तः // ओकारान्त: पुल्लिङ्गो गो शब्दः / . गोरौ घुटि॥२०६॥ गोशब्दस्यान्त और्भवति घुटि परे / गौः / गावौ / गाव: / हे गौः / हे गावौ। हे गावः / अम्शसोरा॥२०७॥ गोशब्दस्यान्त आ भवति अम्शसो: परत: / गाम् / गावौ / या: / गवा। गोभ्याम् / गोभिः / गवे। गोभ्याम् / गोभ्य: / ङसिङसोरलोपश्चेति वर्तते। गोश्च // 208 // गोशब्दात्परयोर्डसिङसोरकारो लोपमापद्यते। गोः / गोभ्याम् / गोभ्यः / गोः। गवोः। गवाम् / गवि। गवोः। गोषु / इत्योकारान्त: / औकारान्त: पुल्लिङ्गो ग्लौशब्दः / ग्लौः / ग्लावौ। ग्लाव: / सम्बोधनेऽपि तद्वत् / ग्लावम् / ग्लावौ / ग्लाव: ग्लावा। ग्लौभ्याम् / ग्लौभि: / इत्यादि / इत्यौकारान्तः / ___इति स्वरान्ता: पुल्लिङ्गाः रा+स्-विसर्ग होकर रा, रै+औ–'ऐ आय' से आय रायौ, राय: बन जाता है। सर्वत्र व्यंजनवाली विभक्ति के आने पर आकार होकर राभ्याम्, राभि: आदि बनता है। ऐकारांत शब्द हुये। अब ओकारांत पुल्लिंग गो शब्द है। गो+सि गो शब्द के अंत के ओ को औ हो जाता है घुट विभक्ति के परे रहने पर // 206 // . ___ गौ+ सि= गौः, गौ+ औ 'औ आव' सूत्र से आव् होकर गावौ, गाव: बना। संबोधन में भी इसी प्रकार है। ___ गो+ अम्, गो+ औ, गो+शस्। / अम् और शस् के आने पर गो शब्द के अन्त के ओ को 'आ' हो जाता है // 207 // गा+अम् = गाम्, गावौ, गा+ अस्= गावः / गो+टा 'ओ अव' से संधि होकर गवा बना / गो + भ्याम् = गोभ्याम्, गोभिः / गो.+उ = गवे। गो+ङसि, गो+ ङस् / गो शब्द से परे ङसि और डस् के अकार का लोप हो जाता है // 208 // गो+स् विसर्ग होकर गो: बना। गो+ओस् 'ओ अव' से संधि होकर गवो: बना। गावो गावः। | गवे गोभ्याम् गोभ्यः / हे गौः हे गावौ हे गावः। गोभ्यः। गाम् गावौ गाः / | गोः गवोः गवाम्। गोभिः। / गवि गोषु / इस प्रकार ओकारांत शब्द हुआ। अब औकारांत ग्लौ शब्द है। ग्लो + सि = ग्लौ; ग्लौ+ औ= ग्लावौ / ग्लौ + अस् = ग्लाव: / ग्लौ+ भ्याम् = ग्लौभ्याम् / इसी प्रकार से औकारांत शब्द हुए। ॥इस प्रकार से स्वरांत पुल्लिंग प्रकरण पूर्ण हुआ। गोभ्याम् गवा गोभ्याम् गवोः