________________ कातन्त्ररूपमाला अघुट्स्वरे लोपम् // 187 // पन्थ्यादीनामन्तो लोपमापद्यते अघुट्स्वरे परे। . व्यञ्जने चैषां निः॥१८८॥ पन्थ्यादीनां नकारो लोपमापद्यते व्यञ्जने चाघुट्स्वरे परे / पथ: / पथा। पथिभ्याम् / पथिभिः / पथे। पथिभ्याम् / पथिभ्यः / पथ: / पथिभ्याम् / पथिभ्यः / पथ: / पथोः / पथाम् / पथि / पथोः / पथिषु / एवं मन्थि ऋभुक्षि शब्दो। इति इकारान्ताः। ईकारान्त: पुल्लिङ्गो यवक्री शब्दः / तत: स्याद्युत्पत्ति: / सौयवक्री: / स्वरादौ / आधातोरिति वर्तमाने। ईदूतोरियुवौ स्वरे // 189 // पन्थान् + अम् “अग्नेरमोकारः” इस सूत्र से अम् के अकार का लोप प्राप्त था, किंतु (अंतरंग और बहिरंग में अंतरंग विधि बलवान् होती है) इस नियम से यहाँ अंतरंग विधि बलवान् हो गई। अत: 'अ' का लोप नहीं हुआ। यहाँ अल्प के आश्रित को अंतरंग और बहुत के आश्रित को बहिरंग कहते हैं। . ' अत: पन्थानम् बन गया। पन्थि + शस् है। अघुट् स्वर विभक्ति के आने पर पन्थि आदि के अंत 'इ' का लोप हो जाता है // 187 // पन्थ् + अस् रहा। व्यंजन और अघुट् स्वर वाली विभक्तियों के आने पर पन्थ् आदि के नकार का लोप हो जाता है // 188 // पथ् + अस् विसर्ग होकर पथ: बना। पन्थि + भ्याम् १८८वें सूत्र से न का लोप होकर पथिभ्याम् बना। पन्थि +टा १८७वें सूत्र से 'इ' का लोप एवं 1883 सूत्र से 'न' का लोप होकर पथा बना। पन्थाः पन्थानौ पन्थानः / पथे पथिभ्याम् पथिभिः हे पन्थाः ! हे पन्थानौ / हे पन्थानः ! | पथः पथिभ्याम् पथिभ्यः पन्थानम् पन्थानौ पथः पथः पथोः पथाम् पथा पथिभ्याम् पथिभिः इसी प्रकार से मन्थि और ऋभुक्षि के रूप चलते हैं जैसेमन्थाः मन्थानः ऋभुषाः ऋभुक्षाणौ ऋभुक्षाणः इस प्रकार से इकारांत शब्द पूर्ण हुए। अब दीर्घ ईकारांत शब्द चलेंगे। यवक्री+सि= यवक्रीः / यवक्री + औ है। 'आधातो:' यह सूत्र अनुवृत्ति में चला आ रहा है। स्वर वाली विभक्ति के आने पर धातु से ईत, ऊत् को इय् उव् आदेश हो जाता है // 189 // | पथि - पथोः पथिषु मन्थानौ