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________________ स्वरान्ता: पुल्लिङ्गाः पतिरसमासे // 184 // पतिशब्दोऽसमासे टादौ स्वरे परे नाग्निर्भवति / पत्या। पतिभ्याम् / पतिभिः / पत्ये / पतिभ्याम् / पतिभ्यः / पत्युः। पतिभ्याम्। पतिभ्यः। पत्युः। पत्योः। पतीनाम्। पत्यौ। पत्योः। पतिषु / भूपत्यादिशब्दानां समासत्वान्मुनिशब्दवत् / पन्थिशब्दस्य तु भेदः / पन्थि स् इति स्थिते / अम्शसोरा इति वर्तते। पन्थिमन्थिऋभुक्षीणां सौ // 185 // पन्थ्यादीनामन्त आकारो भवति सौ परे / पन्थाः / अनन्तो घुटि॥१८६॥ पन्थ्यादीनामन्तोऽन् भवति घुटि परे / पन्थानौ। पन्थानः। सम्बोधनेऽपि तद्वत् / हे पन्थाः। हे पन्थानौ। हे पन्थानः। अग्नेरमोकार इति प्राप्ते। अन्तरङ्गबहिरङ्गयोरन्तरङ्गो विधिर्बलवान् / अल्पाश्रितमन्तरङ्गम् / बह्वाश्रितं बहिरङ्गम् / पन्थानम् / पन्थानौ। पतीन् पतीनाम् पतिभिः पत्यौ पतिषु समान से रहित पति शब्द को टा आदि स्वर वाली विभक्ति के आने पर अग्नि संज्ञा नहीं होती है // 184 // अर्थात् घुट् विभक्ति में पति को अग्नि संज्ञा होकर मुनिवत् रूप बने हैं पुन:संधि होकर पत्या, पति+ उ = पत्त्ये बना। पति+ङसि। पूर्वोक्त 182 सूत्र से ङसि डस् के अ को उ होकर पत्युः बन गया। पतिः पती पतयः पत्ये पतिभ्याम् पतिभ्यः हे पते ! हे पती ! हे पतयः ! | ‘पत्युः पतिभ्याम् पतिभ्यः पतिम् पती पत्युः पत्योः . पत्या पतिभ्याम् पत्योः सूत्र में असमासे क्यों कहा ? * यहाँ पति शब्द अकेला है तो उपर्युक्त प्रकार से चलेगा और यदि भू, धन आदि शब्दों का पति के साथ समास हो जाए तो भूपति, धनपति आदि शब्द मुनि के समान चलते हैं। पन्थि शब्द में कुछ भेद है। पन्थि+सि 'अम् शसोरा' यह सूत्र अनुवृत्ति में चला आ रहा है। पन्थि आदि शब्दों के अंत 'इ' को 'आ' हो जाता है सि विभक्ति के आने पर // 185 // पंथा+ सि, स् का विसर्ग होकर पन्थाः बना। पन्थि + औ। पन्थि आदि शब्दों के अन्त को 'अन्' हो जाता है घुट् स्वर विभक्ति के आने पर // 186 // तब पन्थन् + औ बना 'घुटि चा संबुद्धौ' १७७वें सूत्र से न् की उपधा को दीर्घ होकर पन्थानौ बना। संबोधन में भी इसी प्रकार से है। .
SR No.004310
Book TitleKatantra Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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