________________ 37 स्वरान्ता: पुल्लिङ्गाः अकारान्ताल्लिङ्गात्परष्टा इनो भवति / सन्धिः / / रघुवर्णेभ्यो नो णमनन्त्यः स्वरहयवकवर्गपवर्गान्तरोऽपि // 139 // रेफषकारऋवर्णेभ्य: परोऽनन्त्यो नकार: णमापद्यते स्वरहयवकवर्गपवर्गान्तरोऽपि शब्दान्तरोऽपि / स्वरान्तरस्तावत् / पुरुषेण / द्विवचने।। अकारो दीर्घ घोषवति // 140 // लिङ्गान्तोऽकारो दीर्घमापद्यते घोषवति परे / पुरुषाभ्याम् / भिसैस्वा // 141 // अकारान्ताल्लिङ्गात्परो भिस्.एस् वा भवति / सन्धि: / पुरुषैः / तथैव सम्प्रदानविवक्षायाम् / शेषा: कर्मेत्यादिना सम्प्रदाने चतुर्थी। . डेयः // 142 // अकारान्ताल्लिङ्गात्परो डेयों भवति / घोषवति दीर्घः / पुरुषाय / द्वित्वे पूर्ववत् / पुरुषाभ्याम् / बहुत्वे। पुरुष + इन–'अवर्ण इवणे ए' से संधि होकर पुरुषेन बना। पुन: . रेफ, षकार और ऋवर्ण से परे यदि णकार अंत में नहीं है और वह स्वर ह, य, व कवर्ग और पवर्ग के अनंतर है तो वह नकार णकार हो जाता है // 139 // अर्थात् यदि स्वर ह, य, व आदि उस नकार के अनंतर हैं तो नकार णकार हो जाता है। अत: 'पुरुषेण' बना। द्विवचन. में—पुरुष + भ्याम् है। घोषवान् के आने पर लिंगांत अकार दीर्घ हो जाता है // 140 // तो पुरुषाभ्याम् बना। - बहुवचन में पुरुष + भिस् है। भिस् को ऐस् हो जाता है // 141 // लिंगांत अकार से परे--पुरुष + ऐस् ‘एकारे ऐ ऐकारे च' सूत्र से संधि हुई तो पुरुषैस् / पुन: 'रेफसोर्विसर्जनीयः' से विसर्ग हो - सम्प्रदान की विवक्षा के होने पर 'शेषा: कर्मकरण' इत्यादि सूत्र से चतुर्थी विभक्ति आती है। पुरुष + डे। डे को 'य' हो जाता है // 142 // लिंगांत अकार से परे ढे को य आदेश हो जाता है और 'अकारो दीर्घ घोषवति' से दीर्घ होकर पुरुषाय बन जाता है। द्विवचन में पूर्ववत् पुरुषाभ्याम् / बहुवचन में पुरुष + भ्यस् है।