________________ 38 कातन्त्ररूपमाला धुड् व्यञ्जनमनन्तःस्थानुनासिकम्॥७५ // * अन्त:स्थानुनासिकवर्जितं व्यञ्जनं धुसंज्ञं भवति / क ख ग घ / च छ ज झ। ट ठ ड ढ / त थ द ध। प फ ब भ / श ष स ह इति / - धुटि बहुत्वे त्वे॥१४३ // लिङ्गान्तोऽकार ए भवति बहुत्वे धुटि परे / पुरुषेभ्यः / तथैव अपादानविवक्षायां शेषाः कर्मेत्यादिना अपादाने पञ्चमी। ङसिरात्॥१४४॥ अकारान्ताल्लिङ्गात्परो ङसिराद्भवति / पुरुषात् / द्वित्वबहुत्वयोः पूर्ववत् / दीर्घोच्चारणं किमर्थम् / अकारे लोपे प्राप्ते सति तन्निमित्तम् / पुरुषाभ्यां / पुरुषेभ्यः / तथैव स्वाम्यादिविवक्षायां शेषा: कर्मेत्यादिना , स्वाम्यादौ षष्ठी। - डस् स्यः॥१४५॥ अकारान्ताल्लिङ्गात्परो ङस् स्यो भवति / पुरुषस्य / द्वित्वे, धुटि बहुत्वे त्वे इति वर्तते / ओसि च // 146 // बहुवचन में धुट के आने पर लिंगांत अकार को 'ए' हो जाता है // 143 // पुरुषे + भ्यस्–'स' का विसर्ग होकर पुरुषेभ्य: बना। यहाँ ७५वें सूत्र के नियम से अंतस्थ और अनुनासिक को छोड़कर बाकी व्यंजन को धुट् संज्ञा अपादान अर्थ की विवक्षा में 'शेषा: कर्म' इत्यादि सूत्र से पंचमी विभक्ति आती है। पुरुष + ङसि / ङ और इ का अनुबंध लोप हो जाता है। ___ङसि को आत् हो जाता है // 144 // लिंगांत अकार से परे ङसि विभक्ति को आत् आदेश हो जाता है। तो पुरुष+ आत् = पुरुषात् बन जाता है। यहाँ आत् में दीर्घ 'आ' किसलिए है ? यदि अकार का लोप प्राप्त हो तो उसके लिए दीर्घ आकार है। द्विवचन और बहुवचन पूर्ववत् बनते हैं—पुरुषाभ्याम्, पुरुषेभ्यः / स्वामी आदि की विवक्षा के होने पर 'शेषाः' इत्यादि सूत्र से षष्ठी विभक्ति आती है। पुरुष+ ङस् डस् को 'स्य' होता है // 145 // लिंगांत अकार से परे डस् को स्य आदेश होकर पुरुषस्य बन जाता है। पुरुष+ ओस् 'धुटिबहुत्वेत्त्वे' सूत्र अनुवृत्ति में चला आ रहा है। ओस् के आने पर लिंगांत अकार 'ए' हो जाता है // 146 // १.हस्वोऽकार: सुतरामेव,तस्य सवर्ण दीर्धे कृते रूपसिद्धिर्भवति,तथापि दीर्घविधेर्बाधकं वचनं अकारे लोपमिति, तद् बाधकं भा भूदिति, दीर्घोच्चारणं कृतमित्यर्थः /