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________________ 30 कातन्त्ररूपमाला नामिपरो रम्॥१११॥ नामिन: परो विसर्जनीयो रमापद्यते निरपेक्ष: / ईरथं वचनम् / इरुरोरीरूरौ॥११२॥ अत्र धातोरिरुरोरीरूरौ भवतो विरामे व्यञ्जनादौ च / रेफसोर्विसर्जनीयः। सुपी: सुतः // अग्नि: गच्छति / अग्नि: अत्र / रवि: गच्छति / रवि: अत्र / मुनि: आयाति / मुनि: गच्छति / पटुः वदति / पटुः अत्र। इति स्थिते। __ घोषवत्स्वरेषु // 113 // नामिन: परो विसर्जनीयो रमाऽपद्यते घोषवत्स्वरेषु / अग्निर्गच्छति। अग्निरत्र। रविर्गच्छति। रविरत्र / मुनिरायाति / मुनिर्गच्छति / पटुर्वदति / पटुरत्र // पित: याहि // पित: अत्र / पुन: गच्छति / पुन: अत्र / इति स्थिते। रप्रकृतिरनामिपरोऽपि // 114 // रेफप्रकृतिर्विसर्जनीयों नामिपरोऽप्यनामिपरोऽपि रमापद्यते घोषवत्स्वरेषु परतः। पितर्याहि / पितरत्र / पुनर्गच्छति / पुनरत्र // अह: गणः / अह: अत्र। अह: जयति // अहः आयाति / अहः हसति / अहः अपि / इति स्थिते। अह्नोऽरेफे॥११५॥ नामि स्वर से परे विसर्ग को 'र' हो जाता है // 111 // अर्थात् अवर्ण को छोड़कर शेष किसी भी स्वर से परे विसर्ग को रकार हो जाता है और यह : किसी की अपेक्षा नहीं रखता है मतलब आगे किसी स्वर व्यंजन की अपेक्षा नहीं रहती है। सुपिर्, सुतुर् ___ इर् और उर् को ईर् और ऊर् हो जाता है // 112 // अर्थात् विराम और व्यंजन के आने पर धातु के इर् उर् को दीर्घ ईर् ऊर् हो जाता है। सुपीर्, सुतूर्—'रेफसोर्विसर्जनीयः' इस १३०वें सूत्र से र् का विसर्ग हो जाता है अत: सुपो; सुतूः बन जाता है। अग्नि: + गच्छति स्वर और घोषवान् के आने पर नामि से परे विसर्ग को रकार हो जाता है // 113 // अग्नि: + गच्छति = अग्निर्गच्छति। अग्नि: + अत्र = अग्निरत्र। रवि: + गच्छति = रविगच्छति / रवि: + अत्र = रविरत्र / मुनिः + आयाति = मुनिरायाति / मुनि:+ गच्छति = मुनिर्गच्छति / पटुः+ वदति = पटुर्वदति / पटुः+ अत्र = पटुरत्र / घोषवान् और स्वर के आने पर रेफ से बना हुआ विसर्ग चाहे नामि से परे हो चाहे अनामि से फिर भी 'र' हो जाता है // 114 // पित: + याहि = पितर्याहि, पित: + अत्र = पितरत्र, पुन: + गच्छति = पुनर्गच्छति, पुन: + अत्र = पुनरत्र / अहः + गण:। रेफ रहित घोषवान् व्यञ्जन और स्वर के आने पर अहन् के विसर्ग का रकार हो जाता है // 115 //
SR No.004310
Book TitleKatantra Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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