________________ विसर्जनीयसंधि अकारात्परो विसर्जनीयो लोप्यो भवति यं वाऽऽपद्यते अन्यस्वरे परे / वाशब्दोऽत्र समुच्चयार्थः / न च विकल्पार्थः / / न विसर्जनीयलोपे पुनः सन्धिः // 10 // विसर्जनीयलोपे कृते पुन: सन्धिर्न भवति / क इह, कयिह / क उपरि, कयुपरि / क एषः, कयेषः // देवा: आहुः / भो: अत्र / इति स्थिते / आभोभ्यामेवमेव स्वरे॥१०८॥ आकारभोशब्दाभ्यां परो विसर्जनीय एवमेव भवति (लोपं यं वाऽपद्यते) स्वरे परे / देवा आहुः; देवायाहुः / भो अत्र, भोयत्र // भयो: अत्र / अघो: अत्र / इति स्थिते / भगोअघोभ्यां वा // 109 // भगोअघोभ्यां विसर्जनीय एवमेव भवति (लोपं यं वाऽपद्यते) स्वरे परे / भगो अत्र, भगोयत्र / अघो अत्र, अघोयत्रं // देवा: गताः / भो: यासि / भगो: व्रज। अघो: यज / इति स्थिते। घोषवति लोपम्॥११० // आकारभोभगोअघोशब्देभ्य: परो विसर्जनीयो लोपमापद्यते घोषवति परे / देवा गताः / भो यासि / भगो व्रज। अघो यज // लोपग्रहणं य वेति (एवमेवेति) निवृत्त्यर्थम् // सुपि: / सुतुः / इति स्थिते / यहाँ 'वा' शब्द समुच्चय के लिये है विकल्प के लिये नहीं। विसर्ग के लोप होने पर पुनः संधि नहीं होती है // 107 // क:+ इह = क इह, क य् + इह = कयिह / क: + उपरि = क उपरि, क य् + उपरि = कयुपरि / कः+ एषः = क एषः, क य+ एषः = कयेषः / देवा: + आहुः / आगे स्वर के आने पर आकार और भो शब्द से परे विसर्ग का लोप हो जाता है अथवा यकार हो जाता है // 108 // ___-देवा: +आहुः = देवा आहु; देवा य् + आहुः = देवायाहुः / भो:+अत्र = भो अत्र, भो य+ अत्र = भोयत्र / भगो: + अत्र, अघो: + अत्र।। भगो, अघो से परे विसर्ग का लोप हो जाता है अथवा यकार हो जाता है आगे स्वर के आने पर // 109 // भगो: + अत्र = भगो अत्र, भगोयत्र / अघो: + अत्र = अघो अत्र, अघोयत्र / देवा:+गता: घोषवान के आने पर आकार और भो, भगो और अघो इनसे परे विसर्ग का लोप नित्य हो जाता है // 110 // देवा:+गता: =देवागताः भोः+यासि= भो यासि, भगो:+व्रज= भगोव्रज, अघो:+यज= अघो यज / यहाँ पर सूत्र में लोप शब्द का ग्रहण विकल्प से यकार की निवृत्ति के लिये किया गया है। . सुपिः सुतुः १.न तदः पादपूणे चेत् / तदो विसर्जनीयलोपेपुनस्सन्धिकार्यनिषेधो न भवति पादपूर्णे चेत् // श्लोकः। सैष दाशरथी रामः सैष राजा युधिष्ठिरः॥ सैष कर्णो महात्यागी सैष पार्थो धनुर्धरः।। २.लोपग्रहणं एवमेवेति निवृत्त्यर्थम्।