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________________ 370 कातन्त्ररूपमाला रिशति, रुशति आक्रोशति विशति त्विषति कृषति आश्लिषति द्वेष्टि द्विष्टे दहति द्योतते, शोभते, रोचते आह्वयति भजति भजते श्रयति श्रयते क्षिपति रिश रुश हिंसायां क्रुश आह्वाने गाने रोदने च लिश विच्छ गतौ क्रुश ह्वरणदीप्तयोः विश प्रवेशने त्विष दीप्तौ कृष विलेखने श्लिष् आलिंगने द्विष् अप्रीती दह भस्मीकरणे द्युत शुभ रुच दीप्तौ हृञ् स्पर्धायां वाचि भज श्रिङ सेवायां क्षिप् क्षान्तौ क्षल शौचे अर्ह पूजायां ठौक तौकृ गतौ भ्राज् भ्राष दीप्तौ दीप दीप्तौ भाष व्यक्तायां वाचि जीव प्राणधारणे स्फुट परिहासे नट अवस्यंदने कुट छेदने ग्रस कवलग्रहणे पठ वट ग्रन्थे राज दीप्तौ भ्रासृट् भ्राज़ट भ्लासृट् दीप्तौ कासृ भासू दीप्तौ जिइन्धिदीप्तौ तृ प्लवनतरणयोः भज श्रीङ् सेवायां त्रपूष् लज्जायां आत्मनेपदी आत्मनेपदी आत्मनेपदी आत्मनेपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी आत्मनेपदी आत्मनेपदी परस्मैपदी उभयपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी आत्मनेपदी आत्मनेपदी आत्मनेपदी आत्मनेपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी उभयपदी आत्मनेपदी आत्मनेपदी आत्मनेपदी परस्मैपदी उभयपदी आत्मनेपदी क्षालयति अर्हति ठौकते भ्राजते भ्राषते दीपते भाषते जीवति स्फुटति नटति कुटति ग्रसति पठति राजति, राजते भ्रासते, भ्राजते, भ्लासते कासते, भासते इन्धते तरति भजति, श्रयति त्रपते
SR No.004310
Book TitleKatantra Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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