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________________ कृदन्त: 353 अशूङ् च्याप्तौ / अश्नुते इति अश्नुः / दृ कि विदारणे / दृणातीति दारुः / पणु दाने / सनोतीति / सानुः / जनिङ् प्रादुर्भावे / जायत इति जानुः / चर गतिभक्षणयोः / चरतीति चारु: / चट विगतौ / चटतीति चाटुः / 'सर्वधातुभ्य अस्' मनु ज्ञाने / स गतौ / तिज निशाने / रुजो भङ्गे। मनः / सरः / तेजः / रोगः / भविष्यति गम्यादयः॥७४३॥ औणादिका गमीत्येवमादयः भविष्यति भवन्ति। भविष्यत्कालवृत्तिभ्यः गमादिभ्यः इनादयः स्युरित्यर्थः / गमेरिन्णिनौ च // 744 // गम्लु गतावित्येतस्माद्धातोरिन्णिनौ भवत: / ग्रामं गमिष्यतीति ग्रामं गमी / ग्रामं गामी। . भवतेश्च // 745 // भू सत्तायां इत्येतस्माद्धातोरिन्णिनौ भवत: भविष्यत्काले। भविष्यतीति भवी भावी। इत्यादि सर्वमुणादिषु वेदितव्यम्। - वुण्तुमौ क्रियायां क्रियार्थायाम्॥७४६ // क्रियायां क्रियार्थायामुपपदे धातोर्तुण्तुमौ भवत: भविष्यदर्थे वर्तमानात् / पाचको व्रजति। पक्तुं व्रजति / पक्ष्यामि इति व्रजतीत्यर्थः / एवं गन्तुं दातुं पातुं धरितुं तरितुं योक्तुं भोक्तुं स्रष्टुं द्रष्टुं प्रष्टुं / सहिवहोरोदवर्णस्य // 747 // . सहिवहोरवर्णस्य ओत्वं भवति धुटि परे / सोढुं / वोढुं / 'सर्वधातुभ्य: अस्' इस सूत्र से सभी धातु से अस् प्रत्यय होता है। मनुज्ञाने-मनस् = मनः, स्-सरस्= सर: तिज-निशाने-तेजस् = तेजः, रुज से रोगः। औणादिक गमी आदि भविष्यत् काल में होते हैं / / 743 // भविष्यत्कालवर्ती गमादि से इन् आदि प्रत्यय होते हैं। गम् धात से इन णिन् प्रत्यय होते हैं // 744 // ग्रामं गमिष्यति इति गमी, गामी, ग्रामं गमी। इन् गमिन् णिन् से गामिन् बना है। .... भू धातु से भविष्यत्काल में इन् णिन् प्रत्यय होते हैं // 745 // भविष्यति इति भविन् भाविन्। भवी भावी। उणादि प्रत्ययों में सभी को समझ लेना चाहिये। क्रिया और क्रिया का अर्थ उपपद में होने पर भविष्यत् अर्थ में वर्तमान धातु से 'वुण्' और 'तुम्' प्रत्यय होते हैं // 746 // पच् 'युवुलामनाकान्ता' सूत्र 559 से वुण को 'अक' होकर णानुबंध से वृद्धि होकर पाचक: कारक: इत्यादिक बनेंगे तुम् प्रत्यय से-पक्तुं व्रजति अर्थात् पकायेगा इसलिये जाता है / गन्तुं दातुं पातुं आदि बनेंगे। सह वह के अवर्ण को धुट के आने पर 'ओ' हो जाता है // 747 // 'होढः' सूत्र से ह को ढ् होकर तुं को ढुं होकर मोढुं वोढुं बना है।
SR No.004310
Book TitleKatantra Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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