________________ 352 कातन्त्ररूपमाला रुचादेश व्यञ्जनादेः / / 736 // व्यञ्जनादेश्च रुचादेर्गणात् युर्भवति तच्छीलादिषु / रोचन: / लोचन: / वर्तनः / वर्द्धनः / दीपनः / .. ततो यातेर्वरः // 737 // ततश्चेक्रीयितान्ताद्यातेर्वरो भवति तच्छीलादिषु / यस्यानिनि इति यलोपश्च / यायावरः / कसिपिसिभासीशस्थाप्रमदां च / / 738 // एषां वरो भवति तच्छीलादिषु। ___घोषवत्योश्च कति // 739 // घोषवति तौ च कृति नेड् भवति कस्वरः / पेस्वरः / भास्वरः / ईश्वरः / स्थावर: / प्रमद्वरः / . सनन्ताशंसिभिक्षामुः / / 740 // सनन्तस्याशंसेभिक्षेश्च उर्भवति तच्छीलादिषु / बुभूषः / पिपासुः / बुभुक्षुः / चिकीषुः / शंस-स्तुतौ च / आशंसुः / भिक्ष याञ्चायां / भिक्षुः।। उणादयो भूतेऽपि // 741 // उणादय: प्रत्यया वर्तमाने भूतेऽपि भवन्ति / कृवापाजिमीस्वदिसाध्यशूदषणिजनिचरिचटिभ्य उण् / / 742 // एभ्यो धातुभ्य उण् प्रत्ययो भवति / णकार इद्वद्भावः / करोतीति कारु वा गतिगन्धनयोः / वातीति वायुः / पायुः जायुः / मीङ् हिंसायां / मायुः स्वद आस्वादने / स्वादुः / साध संसिद्धौ साध्यतीति साधुः / व्यञ्जनादि और रुचादि गण से तत्स्वभाव आदि अर्थ में 'यु' प्रत्यय होता है // 736 // रोचन: लोचन: वर्तन: वर्द्धन: दीपन: इत्यादि। चेक्रीयितान्त से तत्स्वभावादि अर्थ यात् से वर प्रत्यय होता है // 737 // यायावरः / 'यस्यानिनि' इत्यादि सूत्र से यकार का लोप हुआ है। कस् पिस् भास् ईश् स्था और प्रमद से तत्स्वभावादि अर्थ में 'वर' प्रत्यय होता है // 738 // घोषवान् से परे कृदन्त प्रत्यय के आने पर इट् नहीं होता है // 739 // कस्वर: पस्वर: भास्वर: ईश्वर: स्थावर: प्रमद्वरः।। सन्नत, आशंसि और भिक्षा से तत्स्वभावादि अर्थ में 'उ' प्रत्यय होता है // 740 // भवितुम् इच्छु: बुभूषुः सब सत्रंत के पिछले सूत्र लगेंगे। पिपासुः बुभुक्षुः चिकीर्षुः। शंस्-स्तुति अर्थ में है आशंसुः भिक्ष—याचा करना भिक्षुः / उण् आदि प्रत्यय वर्तमान और भूत में भी होते हैं // 741 // कृ, वा, पा, जि, मी, स्वदि साधि अशूङ् ह, षणि, जनि, चरि और चट् से 'उण्' प्रत्यय होता है // 742 // णकारानुबंध इद् वत् भाव के लिये है / करोति इति कारु: वातीति वायु: पायु: जायुः मायुः स्वादुः साधुः अश्नुः, दारु: सानुः जानुः चारु: चाटुः /