________________ 354 कातन्त्ररूपमाला शन्त्रानौ स्यसहितौ शेषे च // 748 / / क्रियार्थायां क्रियायामुपपदे भविष्यदर्थे वर्तमानाद्धतो: स्थेन सहितौ शत्रानौ शन्तृङानशौ भवतः। करिष्यामि इति व्रजति कटं करिष्यन् व्रजति / कटं करिष्यमाणो व्रजति / शेषे च करिष्यतीति करिष्यन् करिष्यमाण: / यक्ष्यन् यक्ष्यमाणः / पदरुजविशस्पृशो वा घञ्॥७४९ // एषां घञ् भवति वा / पादः / वेशः / स्पर्शः / उच समवाये ओकः / भावे // 750 // सर्वस्माद्धातोर्घञ् भवति / पाकः / यागः। योग: / त्यज हानौ / त्याग: / भोगः / भाग: / पारः। . भाव: / इत्यादि। घजीन्धेः / / 751 // इन्धेः पञ्चमस्य लोपो भवति भावकरणयो-विहिते घत्रि परे / जिइन्धी दीप्तौ / इन्धनं एधः // . रखुर्भावकरणयोः // 752 // रञ्जुर्भावकरणविहित घजि परे पञ्चमो लोप्यो भवति / रञ्ज रागे / रञ्जनं रागः / ___ उपसर्गादसुदुभ्यां लभेः प्राग भात् खल्योः / / 753 // सदर्वर्जितादपसर्गात्परस्य लभेत् प्राङ् मकारांगमो भवति खल्घजोः परत:। क्रिया है प्रयोजन जिसका ऐसा जो क्रियावाचक पद वह उपपद में होने पर भविष्यत् अर्थ में वर्तमान धातु से 'स्य' सहित शन्तृङ् और आनश् प्रत्यय होते हैं // 748 // . शन्तृङ् का अन्त् और आनश का आन रहता है। कृ स्य अन्त् 'अन् विकरण: कर्तरि' से अन् होकर 'अनि च विकरणे' से गुण होकर करिष्यन्त् बना है असंध्यक्षरयोरस्य तौतल्लोपश्च 26' सूत्र से ष्य के अकार का लोप हुआ है / पुन: लिंग संज्ञा होकर सि विभक्ति में करिष्यन् बना है। 'आन्मोन्त आने' सूत्र 498 से आन के आने पर आत्मने पद में अकारांत से मकार का आगम होता है अत: 'करिष्यमाणः' बना। कटं करिष्यमाण: व्रजति–कट को बनाएगा इसलिये जाता है। यज् से—यक्ष्यन् यक्ष्यमाणः / ___ पद रुज विश् और स्पृश से विकल्प से घञ् प्रत्यय होता है // 749 // पाद: रोग: वेश: स्पर्श: उच-समवाय अर्थ में है उससे ओक: बनता है। सभी धातु से भाव में घञ् होता है // 750 // पच से पाक: योग: भोगः इत्यादि। भाव और करण में घञ्प्रत्यय के आने पर इन्ध के पश्चम अक्षर का लोप हो जाता है // 751 // बिइन्धी–दीप्त होना इन्धनं-एधः / रञ्ज से भाव करण में घञ् के आने पर पंचम का लोप हो जाता है // 752 // रञ्ज-रंगना रञ्जनं-रागः। सु दुर् को छोड़कर अन्य उपसर्ग से परे खल् और घञ् प्रत्यय के आने पर लभ के 'भ' से पहले मकार का आगम हो जाता है // 753 // डुलभष्-प्राप्त करना।