________________ कृदन्त: 319 न कवर्गादिव्रज्यजाम्॥५४३॥ कवर्गादेः व्रजे: अजश्च चजो: कगौ न भवत: / क्षीज कूज गुज अव्यक्ते शब्दे // कूज्यं कूजं / खज मन्थे। खाज्यं / प्राव्राज्यं / अज क्षेपणे / आज्यं / / घ्यण्यावश्यके // 544 // आवश्यके गम्यमाने चजो: कगौ न भवत: घ्यणि परे / अवश्यपाच्यं / अवश्यभोज्यं / प्रवचर्चिरुचियाचियजित्यजाम्॥५४५ // एषां चजोः कगौ न भवतो घ्यणि परे / प्रवाच्यः / आर्य: / रोच्य: / याच्यः / याज्य: / त्यज हानौ / त्याज्य:। - नि:प्राभ्यां युजेः शक्ये // 546 // निप्राभ्यां परस्य युजेगों न भवति शक्यार्थे घ्यणि परे / नियोक्तुं शक्य: नियोज्यः / एवं प्रयोज्य: भृत्यः। भुजोऽन्ने // 547 // भुजो गो न भवति शक्यार्थे घ्यणि परे अने। भोक्तुं शक्यं भोज्यं अन्नं भोज्यं पयः / _____ आसुयुवपिरपिलपित्रपिदभिचमां च // 548 // आयूवात्सुनोतेर्वित्यादिभ्यश्च घ्यण् भवति / आसाव्यं / यु मिश्रणे। यूयते याव्यं / टुवप् बीजतन्तसन्ताने / वाप्यं / रप लप जल्प व्यक्तायां वाचि / राप्यं / लाप्यं / त्रपूष् लज्जायां / त्रप्यं / दंभेरिह प्रकृतिनलोप: / अवदाभ्यं / आचाम्यं / कवर्गादि व्रज और अज के च, ज, को क, ग नहीं होता है // 543 // क्षीज, कूज, गुज-अव्यक्त शब्द करना। कूज्यं कूजं। खज-मन्थे / खाज्यं / व्रज-प्राव्राज्यं / अज-क्षेपण करना = आज्यं / ___ आवश्यक अर्थ में घ्यण् प्रत्यय आने पर च ज को क ग नहीं होता है // 544 // .. अवश्यफमच्यं, अवश्यभोज्यं / प्रवच अर्चि रुचि याच, यज और त्यज के च, ज को घ्यण के आने पर क ग नहीं होता है // 545 // प्रवाच्यः, आर्य:, रोच्यः, याच्य: याज्य:, त्याज्य: / नि और प्र से परे शक्य अर्थ में घ्यण के आने पर युज् के ज् को ग् नहीं होता है // 546 // नियोक्तुं शक्यः = नियोज्य: / प्रयोज्य: भृत्यः / शक्य अर्थ घ्यण् के आने पर अन्न अर्थ में भुज् के ज् को ग् नहीं होता है // 547 // भोक्तुं शक्यं = भोज्यं-अन्न दूध आदि। आङ् पूर्वक सु, यु, वप्, रप, लप, त्रप, दभ और चम् धातु से घ्यण् होता है // 548 // . आसाव्यं / यु-याव्यं, वाप्यं, राप्यं, लाप्यं, त्रप्यं, अवदाभ्यं आचाम्यं /