________________ 320 कातन्त्ररूपमाला उवर्णादावश्यके // 549 // उवर्णान्तात् घ्यण् भवति अवश्यंभावे गम्यमाने / अवश्यं लूयत इति लाव्यं / एवं नाव्यं / भाव्यं / - पाधोर्मानसामिधेन्योः // 550 // पाधोरित्येतयोनिमामिधेन्योरर्यथासंख्यं ध्यण् भवति / आयिरिच्यादन्तानामिति आयिप्रत्ययः / पाय्यं / धाय्यं / सामिधेनो ऋक् / प्राङोनियोऽसंमतानित्ययोः स्वरवत् // 551 // ___प्राङोरुपपदयोर्नियो धातोरसंमतानित्ययोर्यथासंख्यं घ्यण् भवति स च स्वरवत् / प्रणाय्यश्चोरः / निग्राह्य इत्यर्थः / यो गाहपत्यादानीयत इति स चानित्यो रूढित: / आनाय्यो दक्षिणाग्निः / __.. सञ्चिकुण्डपः कृतौ // 552 // ___ संपूर्वाच्चिनोते: कुण्डपूर्वात्पिबतेय॑ण् भवति स च स्वरवत् कृतावभिधेये। सञ्चायः क्रतुः / कुण्डपाय: क्रतुः। राजसूयश्च // 553 // कृतावभिधेये राजसूय इति निपात्यते / राजा सोतव्य: राजा वा सूयते इति राजसूय: / सान्नाय्यनिकाय्यौ हविर्निवासयोः // 554 // एतौ निपात्येते हविर्निवासयोरर्थयोः। सान्नाय्यं हवि: विशिष्टमन्त्रनिकाय्यो निवासः / परिचाय्योपचाय्यावग्नौ // 555 // एतावग्नावर्थे निपात्येते / परिचाय्योऽग्निः / उपचाय्योऽग्निः / अवश्यंभावी अर्थ में उवर्णांत से घ्यण् प्रत्यय होता है / / 549 // लु-लाव्यं, नु-नाव्यं, भ-भाव्यं / ___पा और धा को मान् सामिधेनी अर्थ में घ्यण होता है // 550 // 'आयिरिच्यादन्तानाम्' सूत्र से आय् प्रत्यय होता है। पाय्यं, धाय्यं / प्र और आङ् उपपद में होने पर नी धातु से असंमत और अनित्य में स्वरवत् घ्यण होता है // 551 // प्र नी य ई को ऐ होकर ‘ऐ आय' से आय होकर. प्रणाय्य:-चौर: निग्राह्यः है ऐमा अर्थ है आनाय्य: दक्षिणाग्निः। संपूर्वक चिञ् और कुण्ड पूर्वक पा धातु से कृदन्त में घ्यण् प्रत्यय होता है / / 552 // और वह स्वरवत् होता है। सञ्चाय: क्रतुः, कुंडपाय्य: क्रतुः / यज्ञ अर्थ में राजसूय निपात से होता है // 553 // राजा सोतव्य: अथवा राजा सूयते 'राजसूयः'। हविस् और निकस अर्थ में 'सान्नाय्य' 'निकाय्य' निपात से बनते हैं // 554 // सानाय्य:, हविः / विशिष्ट मंत्र निकाय्य: निवास: / परिचाय्य, उपचाय्य से अग्नि अर्थ में निपात से सिद्ध होते हैं // 555 // परिचाय्य: उपचाय्य:=अग्निः /