________________ 302 कातन्त्ररूपमाला तोदयति / अतूतुदत् / मारयति / अमीमरत् / मोचयति। अमूमुचत् / रोधयति / अरूरुधत् / भोजयति अबूभुजत् / योजयति / अयूयुजत् / तानयति / अतीतनत् / मानयति / अमीमनत् / कारयति अचीकरत् / __ स्मिजिक्रीडामिनि // 454 // एषामाकारो भवति इनि परै / विस्मापयति / व्यसस्मपत् / विजापयति / व्यजिजपत् / विक्रापयति / व्यचिक्रपत् / अध्यापयति / अध्यापिपत् / वीरयति अवीवरत् / ग्राहयति अजिग्रहत् / चोरयति अचूचुरत् / तन्त्रयति अततन्त्रत्। मानुबन्धानां ह्रस्वः // 455 // मानुबन्धानां धातूनां ह्रस्वो भवति इनि परे // अस्योपधाया दी? न भवति // घटादयो मानुबन्धाः / घट चेष्टायां // घटयति // अजिघटत् / व्यथ भयचलनयोः // व्यथयति / अविव्यथत् / - जनिजृष्क्नसोऽमन्ताश्च / / 456 // एषां ह्रस्वो भवति सनि परे / जनिङ् प्रादुर्भावे / जनयति / अजीजनत् / जृष् वयोहानौ // जरयति . अजीजरत् / क्नस हरण दीप्तौ / क्नसयति / अचिक्नसत् / रञ्च रागे। रञ्जेरिनि मृगरमणे // 457 // मृगरमणार्थे इनि परे रञ्जेरनुषङ्गलोपो भवति / रजयति / अरीरजत् / पक्षे रञ्जयति // अररञ्जत् / रमु क्रीडायां / रमयति / अरीरमत् / श्रमु तमसि खेदे च / श्रमयति / अशिश्रमत् / ज्वलह्वलालनमोनुपसर्गा वा // 458 // अभिषावयति / आशयति / आशिशत् / वृद्धि होकर-चाययति / अचीचयत् / तोदयति / अतूतुदत् / मारयति / अमीमरत् / मोचयति अमूमुचत् / रोधयति / कारयति / अचीकरत् / इत्यादि / इन् के आने पर स्मि, जि, क्री और इङ् को आकार हो जाता है // 454 // विस्मापयति / व्यसिस्मपत् / विजापयति / व्यजिजपत् / विक्रापयति / व्यचिक्रपत् / अध्यापयति / अध्यापिपत् / वारयति / अवीवरत् / ग्राहयति / अजिग्रहत् / चोरयति / अचूचुरत् / इन् के आने पर मानुबंध्र धातु को ह्रस्व हो जाता है // 455. // अ की उपधा को दीर्घ नहीं होता है। घटादि धातु मानुबंध कहलाते हैं। घट-चेष्टा करना। घटयति / अजीघटत् / व्यथ-भय, चलन / व्यथयति / अविव्यथत्। जन् जृष् क्नस् और रञ्ज के धातु को इन् के आने पर ह्रस्व होता है // 456 // जनिङ्-प्रादुर्भावे / जनयति / अजीजनत् / जृष्-जीर्ण होना या वृद्ध होना / जरयति / अजीजरत् / क्नस-ह्वरण और दीप्त अर्थ में है। क्नसयति / अचिक्सनत् / रञ्ज-रंग। - मृगों को रमण कराने अर्थ में इन् प्रत्यय के आने पर रञ्ज के अनुषंग का लोप हो जाता है // 457 // रजयति / अरीरजत् / पक्षे–रञ्जयति। अररञ्जत् / रमु-क्रीडा करना। रमयति। अरीरमत् / श्रमु-श्रमयति / अशिश्रमत्। ज्वल, ह्वल, ह्मल और नम धातु उपसर्ग सहित नियम से मानुबन्ध होते हैं। और उपसर्ग रहित विकल्प से मानुबन्ध होते हैं // 458 //