________________ तिङन्त: 293 अतोन्तोऽनुस्वारोऽनुनासिकान्तस्य // 415 // __ अनुनासिकान्तस्य धातोरभ्यासस्यान्ते अनुस्वारागमो भवति चेक्रीयिते परे / चंक्रम्यते / कुटिल इति किम् ? भृशं पुन: पुनर्वा क्रामति। वञ्चित्रंसिध्वंसिभ्रंसिकसिपतिपदिस्कन्दामन्तो नी॥४१६ // एषामभ्यासस्यान्तो नी आगमो भवति चेक्रीयिते प्रत्यये परे। वनीवच्यते / अनिदनुबन्धानामगुणेनुषङ्गलोप: / अत्यर्थं स्रंसते सनीस्रस्यते / दनीध्वस्यते / बनीभ्रस्यते / कस गतौ / कसि गतिशासनयोः / अत्यर्थं कसति चनीकस्यते / पनीपत्यते / स्कन्दिर् गतिशोषणयोः / चनीष्कद्यते / घ्राध्मोरी॥४१७॥ घ्राध्मोरित्येतयोराकारस्य ईकारो भवति चेक्रीयिते प्रत्यये परे / जेघीयते / देध्मीयते / “हन्तेनी वा वक्तव्यं” हन्तेी वा भवति चेक्रीयितें प्रत्यये परे अत्यर्थं हन्ति जेनीयते / अभ्यासाच्च // 418 // अभ्यासात्परस्य हन्तेर्हस्य घो भवति / . अतोन्तोऽनुस्वारोऽनुनासिकान्तस्य // 419 // धातोरभ्यासस्य अत: अकारास्यान्तोऽनुस्वारागमो भवति चेक्रीयिते परे / जंघन्यते / // 420 // अनुनासिकान्त धातु से चेक्रीयित प्रत्यय के आने पर अभ्यास के अंत में अनुस्वार का आगम हो जाता है // 415 // ___च क्रम्यते = चंक्रम्यते / कुटिल अर्थ में हो ऐसा क्यों कहा ? भृशं पुन: पुनर्वा क्रामति यहाँ चेक्रीयित प्रत्यय नहीं हुआ है। वञ्च, स्रंस, ध्वंस् भ्रंस कसि पति पदि स्कंद धातु को चेक्रीयित प्रत्यय के आने पर अभ्यास के अंत में 'नी' का आगम हो जाता है // 416 // ___'इदनुबंध' को अगुण में अनुषंग का लोप हो गया। वनीवच्यते / अत्यर्थं संसते = सनीस्रस्यते / दनीध्वस्यते / बनीभ्रस्यते। कस-गमन करना। कसि-गमन और शासन / अत्यर्थं कसति = चनीकस्यते / अत्यर्थं पतति = पनीपत्यते / स्कंदिर्-गति और शोषण अर्थ में है। चनीस्कद्यते। चेक्रीयित प्रत्यय के आने पर घ्रा और ध्या के आकार को ईकार हो जाता है // 417 // ____ जेघीयते / देध्मीयते / “हन् को नी विकल्प से होता है” अत्यर्थं हन्ति = जेनीयते / पक्ष में—ज हन् य ते। अभ्यास से परे हन् के ह को घ हो जाता है // 418 // चेक्रीयित प्रत्यय के आने पर अनुनासिकांत होने से धातु के अभ्यास के अंत में अनुस्वार का आगम हो जाता है // 419 // जंघन्यते। अगुण यकार प्रत्यय के आने पर खन सन जन के अंत को विकल्प से आकार हो जाता है // 420 //