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________________ 284 कातन्त्ररूपमाला भावकर्मार्थासु स्यसिजाशी:श्वस्तनीषु परत: स्वरहनग्रहदृशामिड् इज्वद्भवति वा। अन्वभावि अन्वभाविषातां अन्वभाविषत। अन्वभाविष्ठाः अन्वभाविषाथां अन्वभाविढ्वं // अन्वभाविषि अन्वभाविष्वहि अन्वभाविष्महि / अन्वभवि अन्वभविषातां अन्वभविषत। असाविषातां / असाविषत / असोषातां असोषत / असविषातां। असविषत। *हस्य हन्तेर्धिरिनिचोः // 367 // हन्तेर्हस्य धिर्भवति इनिचो: परत: / अघानि अघानिषातां अघानिषत // हनिमन्यते त् // 368 // आभ्यां परमसार्वधातुकमनिड् भवति / अहसातां अहसत / हने: सिच्यात्मने दृष्टः सूचनेर्थे यसेरपि / विवाहे तु विभाषैव सिजाशिषोर्गमेस्तथा // . आत्मनेपदे वा॥३६९ // अद्यतन्यामात्मनेपदे परे हन्तेर्वधिरादेशो वा भवति / अवधि अवधिषातां अवधिषत / नेज्वदिटः॥३७०॥ इज्वदिटो दीपों न भवति / अग्राहिषातां अग्राहिषत / अग्रहीषातां अग्रहीषत / अदर्शि अदर्शिषातां अदर्शिषत। अदृक्षातां अदृक्षत् / अदृष्ठा: अदृक्षाथां अदृड्ढ्वं // श्वस्तनी। भाविता भविता। साविता सविता / सोता / घानिता। हन्ता / ग्राहिता / ग्रहीता। दर्शिता / दृष्टा // आशी: / भविषीष्ट / भविषीष्ट / साविषीष्ट सविषीष्ट / सोषीष्ट / / हन्तेर्वधिराशिषि // 371 // अन्वभावि अन्वभाविषातां अन्वभाविषत। अन्वभवि। असावि असाविषातां असाविषत / असोषातां असोषत / असविषतां / इन् और इच के आने पर हन् के ह को घ हो जाता है // 367 // अघानि अघानिषातां अघानिषत। हन और मन् से परे असार्वधातुक अनिट् होता है // 368 // अहसातां अहसत। श्लोकार्थ-सिच और आत्मनेपद में हन धातु से आत्मनेपद होने पर सिच् प्रत्यय परे इट् का अभाव होता है यम धातु से सूचना अर्थ में इट का अभाव होता है विवाह अर्थ में तो विकल्प से होता है तथा गम धातु से सिच् और आशीर्वाद में इट् का अभाव होता है। अद्यतनी में आत्मनेपद के आने पर हन् को वध आदेश विकल्प से होता है / / 369 // अवधि अवधिषातां अवधिषत। इच के समान इट् को दीर्घ नहीं होता है // 370 // अग्राहिषातां अग्राहिषत् / अग्रहीषातां अग्रहीषत / अदर्शि अदर्शिषातां अदर्शिषत। अदृक्षातां अदृक्षत / श्वस्तनी में-भाविता भविता। साविता, सविता, सोता। घानिता, हन्ता। दर्शिता दृष्टा आदि / आशी में-भाविषीष्ट, भविषीष्ट / आशिष् के आने पर हन् को वध आदेश होता है // 371 // .
SR No.004310
Book TitleKatantra Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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