________________ तिङन्त: 283 सर्वस्माद्धातोरिज्भवति भावकर्मणोविहिते अद्यतन्यामात्मनेपदे प्रथमैकवचने परे / अभावि / कर्मणि अन्वभावि। ऐधि / अपाचि / अनन्दि / अस्तम्भि। अभ्रंसि / अध्वंसि / आयिरिच्यादन्तानाम्॥३६४॥ आदन्तानां धातूनामायिर्भवतीचि परे // अवायि। अव्यायि। अपायि। अधायि अदायि। ग्लै हर्षक्षये। अग्लायि / म्लै गात्रविनामे / अम्लायि / अगायि / अमायि / अस्थायि / अवासायि / अरायि / अशायि / अवाचि / अहावि / अद्यायि। अद्रायि / अभारि / अदेवि / असावि। अजायि / उपसर्गात्सुनोतिसुवतिस्यतिस्तौतिस्तोभतीनामडन्तरोपि / / 365 // उपसर्गस्थनिमित्तात्परेषामडन्तरोपि षत्वमापद्यते। अपिशब्दादनन्तरोपि // अभ्यषावि। आशायि / अचायि। अतोदि। अमारि / अमोचि / अरोधि / अभोजि। अयोजि। अतानि / अमानि / अकारि / अक्रायि / अवारि / अग्रायि / अचोरि। अपालि / अतन्त्रि / अवारि / आर्चि / अद्यतनी समाप्ता // बभूवे देवदत्तेन / एधाञ्चक्रे // पेचे। इत्यादि // इति परोक्षा / भविता देवदत्तेन / एधिता। पक्ता / इति श्वस्तनी समाप्ता // आशी: / भविषीष्ट देवदत्तेन / एधिषीष्ट / पक्षीष्ट / भविष्यन्ती / भविष्यते देवदत्तेन / एधिष्यते / पक्ष्यते / इत्यादि // क्रियातिपत्तिः / अभविष्यत देवदत्तेन / एधिष्यत / अपक्ष्यत इत्यादि / स्यसिजाशीःश्वस्तनीषु भावकर्मार्थासु स्वरहनग्रहदृशामिडिज्वद्वा // 366 // अद्यतनी के आत्मनेपद में प्रथमा के एकवचन में इच् होता है। भू-अभावि / कर्म में-अन्वभावि। ऐधि / अपाचि / अनन्दि / अस्तंभि / अभ्रंसि / अध्वंसि। __ इच के परे आदन्त धातु को 'आय' होता है // 364 // वेञ्-अवायि / व्यञ्-अव्यायि / पा-अपायि / अधायि / अदायि / अग्लायि / अम्लायि / अगायि। अमायि / अस्थायि / अवासायि / अरायि / अशायि / अहावि / अधायि / अदायि / अभारि / अदेवि। असावि / अजायि। ___ उपसर्ग से परे सु सो, स्तु, स्तुम धातु में अट् अन्तर में होते हुए भी 'ष' हो जाता है // 365 // अपि शब्द से अनन्तर में भी 'ष' हो जाता है। अभ्यषायि। अशायि। अचायि। अतोदि। अमारि। अमोचि। अरोधि / अभोजि / अतानि / ... अकारि / अक्रायि / अचोरि / आर्चि। इस प्रकार से अद्यतनी समाप्त हुई। ___ परोक्षा में-बभूवे देवदत्तेन / एधांचक्रे / पेचे / इत्यादि / श्वस्तनी में-भविता देवदत्तेन / ऐधिता। पक्ता / इत्यादि / आशी: में-भविषीष्ट देवदत्तेन / एधिषीष्ट / पक्षीष्ट / आदि। भविष्यन्ती में-भविष्यते देवदत्तेन / एधिष्यते / पक्ष्यते / आदि। क्रियातिपत्ति में—अभविष्यत देवदत्तेन / ऐधिष्यत / अपक्ष्यत आदि। भाव, कर्म और अर्थ में स्य सिच् आशी और श्वस्तनी के आने पर स्वर हन् ग्रह दृश् धातु में इट् को इच् वत् विकल्प से होता है // 366 //