________________ 278 कातन्त्ररूपमाला दयायासश्च // 352 // एभ्य आम् भवति परोक्षायां / दय दानगतिहिंसादानेषु / दयाञ्चक्रे / अयाञ्चक्रे / आसाञ्चक्रे / इति परोक्षा समाप्ता॥ भविष्यति भविष्यन्त्याशीःश्वस्तन्यः // 353 // भविष्यति काले भविष्यन्त्याशी:श्वस्तन्यो भवन्ति / तासां स्वसंज्ञाभिः कालविशेषः // 354 // तासां विभक्तीनां स्वसंज्ञाभि: कालस्य विशेषो भवति / श्वो भव: काल: श्वस्तनस्तत्र श्वस्तनी भवति / भविता भवितारौ भवितारः / भवितासि भवितास्थ: भवितास्थ / भवितास्मि भवितास्व: भवितास्मः / एधिता एधितारौ एधितारः। एधितासे एधितासाथे एधिताध्वे। एधिताहे एधितास्वहे एधितास्महे / पक्ता / नन्दिता। स्रंसिता। भ्रंसिता। ध्वंसिता। शकि वकि कौटिल्ये। शङ्किता। वङ्किता। वदिङ् अभिवादनस्तुत्योः / वन्दिता वन्दितारौ वन्दितारः / वन्दितासे / वेञ् तन्तुसन्ताने / व्याता व्यातारौ व्यातारः। व्यातासे / इति भ्वादिः / अत्ता। शयिता। वक्ता / इत्यदादिः / होता / धाता। भर्ता / इति जुहोत्यादिः / देविता / सेविता / नद्धा। इति दिवादिः / सोता। अशिता / चेता। इति स्वादिः / तोत्ता / मर्ता / मोक्ता / इति तुदादिः। रोद्धा / भोक्ता / योक्ता / इति रुधादिः / तनिता। मनिता। कर्ता / इति तनादिः / क्रे वरिता / ग्रहीता / इति क्यादिः / चोरयिता / तन्त्रयिता / वारयिता / इति चुरादिः / इति श्वस्तनी समाप्ता / दय अय् आस से परे परोक्षा में आम होता है // 352 // दय-दान, गति, हिंसा अर्थ में है। दयांचक्रे। अय्-गमन अयाञ्चक्रे। आस्-उपवेशन करना-बैठना। आसाञ्चक्रे। / इति चुरादि। इस प्रकार से परोक्षा प्रकरण समाप्त हुआ। अथ श्वस्तनी विभक्ति प्रारम्भ। . भविष्यत् काल में भविष्यति, आशी: और श्वस्तनी विभक्तियाँ होती हैं // 353 // उन विभक्तियों का अपनी-अपनी संज्ञाओं से काल में विशेष होता है // 354 // श्वो भव: काल: श्वस्तन: आगे आने वाला कल दिन श्व कहलाता है उसमें होने वाली क्रिया श्वस्तनी उसमें ता तारो तारस् आदि विभक्तियाँ होती हैं / भविता भवितारौ भवितारः / भवितासि भवितास्थ: भवितास्थ / भवितास्मि भवितास्व: भवितास्मः / एधिता। पक्ता / नन्दिता / स्रंसिता। भ्रंसिता। ध्वंसिता। शकि, वकि-कुटिलता करना। शङ्किता। वङ्किता। वदिङ्-अभिवादन करना, स्तुति करना / वंदिता वंदितारौ वन्दितारः / वंदितासे / वेज बनना। व्याता व्यातारौ। इति भ्वादिः / __अत्ता। शयिता। वक्ता। इत्यदादिः / होता। धाता। भर्ता / इति जुहोत्यादिः / देविता सेविता। नद्धा। इति दिवादिः / सोता। अशिता। चेता। इति स्वादिः / तोत्ता। मर्ता / मोक्ता। इति तुदादिः / रोद्धा। भोक्ता। योक्ता / इति रुधादिः / तनिता / मनिता। कर्ता / इति तनादिः / क्रेता। वरिता। ग्रहीता। इति क्यादिः / चोरयिता / तन्त्रयिता / वारयिता / इति चुरादिः / ___ इस प्रकार से श्वस्तनी प्रकरण समाप्त हुआ।