________________ तिङन्तः 277 सुट् भूषणे सम्पर्युयात्॥३४७॥ सम्पर्युपात्परस्य कृञ् आदौ सुट् भवति भूवर्णेऽथें द्विर्वचने / ___शिट्परोऽघोषः // 348 // अभ्यासस्य शिट: परोऽघोषोऽवशेष्यो भवति / शिटो लोप इत्यर्थः / संचस्कार / ___ ऋतश्च संयोगादेः // 349 // संयोगादेर्धातो: ऋतो गुणो भवति परोक्षायामगुणे / संचस्करतुः संचस्करुः / संचस्करिथ संचस्करथुः संचस्कर। परिचस्कार परिचस्करतुः। उपचस्कार उपचस्करतुः उपचस्करः। उपचस्करे उपचस्कराते उपचस्करिरे। उपचस्करिवे उपचस्कराथे उपचस्करिध्वे। उपचस्करे उपचस्करिवहे उपचस्करिमहे / इति तनादिः / चिक्राय चिक्रियतुः चिक्रियुः / चिक्रियिथ चिक्रियथुः / चिक्रिये चिक्रियाते चिक्रियिरे / ववे वव्राते वविरे। - सृवृभृस्तुद्रुसुश्रुव एव परोक्षायाम्॥३५० // एभ्यो धातुभ्य: परो नेड् भवति एव परोक्षायां / जग्राह जगृहतुः जगृहुः / जगृहे / इति क्यादिः / ___ चकास्कास्प्रत्ययान्तेभ्य आम् परोक्षायाम्॥३५१॥ 'एभ्य आम् भवति परोक्षायां। चकास् दीप्तौ। चकासाञ्चकार चकासाञ्चक्रतुः। चकासाञ्चक्रे चकासाञ्चक्रांते चकासाञ्चक्रिरे / कासृ भासू दीप्तौ / कासाञ्चक्रे / चोरयाञ्चकार / चोरयाञ्चक्रे / पालयामास पालयामासतुः / पालयाञ्चकार पालयाञ्चक्रतुः पालयाञ्चक्रुः / एवं पालयाञ्चक्रे पालयांञ्चक्राते पालयाञ्चक्रिरे / :तन्त्रयाञ्चक्रे / वारयाञ्चकार / वारयाञ्चक्रे। भूषण अर्थ में सम् परि उप् उपसर्ग से परे कृ धातु की आदि में सुट् होता है // 347 // द्वित्व होता है। ___ अभ्यास शिट् के परे अघोष अवशेष रहता है // 348 // . अर्थात् शिट् का लोप हो जाता है। संचस्कार / परोक्षा के अगुण में संयोगादि धातु से ऋकार को गुण हो जाता है // 349 // संचस्करंतुः संचस्करुः / परिचस्कार / उपचस्कार / इस प्रकार से परोक्षा में तनादि गण समाप्त हुआ। अथ परोक्षा में क्रयादि गण। क्री-चिक्राय चिक्रियतुः चिक्रियुः / चिक्रिये / ववे / परोक्षा में स, वृ, शु, स्तु, द्रु सु और श्रु धातु से परे इट् नहीं होता है // 350 // जग्राह जगृहतुः जगृहुः / जगृहे / इस प्रकार से परोक्षा में ब्यादि गण समाप्त हुआ। ___ अथ परोक्षा में चुरादि गण। परोक्षा में चकास् कास् और प्रत्ययांत से आम् होता है // 351 // चकासृ-दीप्त होना। चकासाञ्चकार। चकासाञ्चक्रतुः चकासाञ्चकुः। चकासाञ्चक्रे। कासृ भास-दीप्त होना कासाञ्चक्रे। चर-स्तेये। चोरयाञ्चकार / चोरयाञ्चक्रे। पालयामास। पालयांब पालयाञ्चकार पालयाञ्चक्रे। तन्त्रयाञ्चक्रे। वारयाञ्चकार / वारयाश्चक्रे।