________________ 276 कातन्त्ररूपमाला ऋकारे च॥३४३॥ तस्माद्दी(भूतादभ्यासाकारात्परः परादौ नकारागमो भवति ऋकारे च परोक्षायां / आनृधे आनृधाते आनृधिरे। : चेः किर्वा // 344 // चे: किर्वा भवति परोक्षायां / चिकाय चिक्यतुः चिक्युः / चिक्ये / चिचाय चिच्यतुः चिच्युः / चिच्ये चिच्याते चिच्यिरे / इति स्वादिः / तुतोद तुतुदतुः तुतुदुः। मृञ् प्राणत्यागे। आशीरद्यतन्योश्च // 345 // मृञ् आत्मनेपदी भवति चकारादनि च परे नान्यत्र / ममार मम्रतुः ममः। - थल्यृकारात्॥३४६ // ऋकारान्तात् थलि नेड् भवति। ममर्थ मम्रथुः मम्र। मुमोच मुमुचतुः मुमुचुः / मुमुचे मुमुचाते मुमुचिरे / इति तुदादिः / रुरोध रुरुधतुः / बुभुजे बुभुजाते / युयोज। युयुजे / इति रुधादिः / ततान तेनतुः तेनुः / तेने तेनाते तेनिरे / मेने मेनाते मैनिरे / चकार चक्रतुः / चक्रे चक्राते। “अस्यादेः सर्वत्र” इससे दीर्घ नहीं हुआ। 'अंतश्चेत् संयोगः' ऐसा क्यों कहा ? अटआट आटतुः / ऋध-वृद्धि होना। परोक्षा में दीर्घाभूत अभ्यास अकार से परे ऋकार के आने पर पर की आदि में नकार का आगम होता है // 343 // आनृधे आनृधाते आनृधिरे / चिञ्-चयन करना। परोक्षा में चवर्ग को कवर्ग विकल्प से होता है // 344 // चिकाय चिक्यतुः चिक्युः / चिक्ये। चिचाय चिच्यतुः चिच्युः / चिच्ये चिच्याते चिच्यिरे / इस प्रकार से परोक्षा में स्वादि गण समाप्त हुआ। अथ परोक्षा में तुदादि गण तुतोद तुतुदतुः तुतुदुः। मृङ्—प्राण त्याग करना। अन् विकरण के आने पर मृङ् आत्मनेपद में चलता है अन्यत्र नहीं // 345 // ममार मम्रतुः मनुः। ___ थल के आने पर ऋकारांत से इट् नहीं होता है // 346 // ममर्थ मम्रथुः मम्र / मुच्–मुमोच मुमुचतुः मुमुचुः / मुमुचे। परोक्षा में तुदादिगण समाप्त हुआ। _ अथ परोक्षा में रुधादि गण। रुरोध रुरुधतुः रुरुधुः / भुज धातु भोजन अर्थ / उसमें आत्मनेपदी है भु–बुभुजे बुभुजाते बुभुजिरे / युजिर्-युयोज युयुजतुः युयुजुः / युयुजे। इस प्रकार से परीक्षा में रुधादि गण समाप्त हुआ। अथ परोक्षा में तनादि गण प्रारंभ होता है। तनु-विस्तार करना। ततान तेनतुः तेनुः / तेने तेनाते / मेने मेनाते मेनिरे / डुकृञ्-चकार चक्रतुः चक्रुः / चक्रे चक्राते चक्रिरे।