________________ तिङन्त: 275 बिभेथ। ह्री लज्जायां। जिह्रयाञ्चकार जिह्रयाञ्चक्रतुः जिह्रयाञ्चक्रुः / जिह्राय जिह्रियतुः जिह्रियुः / बिभराञ्चकार बिभराञ्चक्रतुः बिभराञ्चक्रुः / इत्यादि / जहे जहाते जहिरे / दधौ दधतुः दधुः / दधिथ दधाथ / दधे दधाते दधिरे / दधिषे दधाथे दधिध्वे / दधे दधिवहे दधिमहे / इति जुहोत्यादिः / दिदेव दिदिवतुः दिदिवुः / सुषुवे सुषुवाते सुषुविरे / ननाह नेहतुः नेहुः / नेहिथ ननद्ध नेहथुः नेह / ननाह नेहिव नेहिम / नेहे नेहाते नेहिरे / इति दिवादिः / सुषाव सुषुवतुः सुषुवुः / सुषविथ सुषोथ / अस्यादेः सर्वत्र // 339 // ' अभ्यासस्य अकारस्य दीर्घो भवति परोक्षायां सर्वत्र / अश्नोतेश्च // 340 // अश्नोतेस्तस्माद्दी/भूतादभ्यासाकारात्परः परादौ नकारागमो भवति परोक्षायां / आनशे आनशाते आनशिरे / व्यानशे व्यानशाते व्यानशिरे / ऋच्छ गतीन्द्रियप्रलयमूर्तिभावेषु / ऋच्छ ऋतः // 341 // ऋच्छधातोर्गुणो भवति परोक्षायां / तस्मानागमः परादिरन्तश्चेत्संयोगः // 342 // तस्माद्दी(भूतादभ्यासस्याकारात्परः परादौ नकारागमो भवति धातोरन्त: संयोगश्चेत्परोक्षायां / आनर्छ आनर्छतुः / आनछुः / अञ्जू व्यक्तिमर्षणकान्तिगतिषु / आनञ्ज आनञ्जतुः आनञ्जुः / आनञ्जिथ आनक्थ आनञ्जथुः आनञ्ज / आनञ्ज आनञ्जिव आनञ्जिम / तस्मादिति किं / आछि आयामे / आञ्छ आञ्छतुः आञ्छु: / अयमस्यादेः सर्वत्र इति न क्लप्तो दीर्घः / अन्तश्चेत्संयोग इति किं ? आट आटतः। ऋध वृद्धौ। इस प्रकार से परोक्षा में जुहोत्यादिगण समाप्त हुआ। अथ परोक्षा में दिवादि गण दिवु-क्रीड़ादि / दिदेव दिदिवतुः दिदिवुः / सुषुवे सुषुवाते / ननाह नेहतुः नेहुः / नेहे नेहाते नेहिरे / इस प्रकार से परोक्षा में दिवादि गण समाप्त हुआ। अथ परोक्षा में स्वादि गण / षुञ्-अभिषव करना / सुषाव सुषुवतुः सुषुवुः / परोक्षा में सर्वत्र अभ्यास के अकार को दीर्घ हो जाता है // 339 // दीर्घाभूत अभ्यास के आकार वाले अश् धातु से पर की आदि में नकार का आगम हो जाता है // 340 // परोक्षा में अशूङ् व्याप्त होना। आनशे आनशाते आनशिरे / व्यानशे। ऋच्छ—गति, इंद्रिय प्रलय, मूर्ति भाव। ___ परोक्षा में ऋच्छ धातु को गुण हो जाता है // 341 // उस दीर्घाभूत अभ्यास के अकार से परे पर की आदि में नकार का आगम होता है यदि परीक्षा में अंत संयोग है // 342 // - अच्छ, आर्छ 'न' आगम से आनछे आनर्छतुः / अत–व्यक्ति, मर्षण कांति और गति / आनञ्ज आनञ्जतुः / तस्मात् ऐसा क्यों कहा ? आछि—आयाम अर्थ में है। आञ्छ आञ्छतुः आञ्छु: अयं