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________________ तिङन्त: 233 अभ्यासस्यादिव्यञ्जनमवशेष्यम्॥१७१॥ अभ्यासस्यादिव्यञ्जनमवशेष्यं भवति। अनादेलोप इत्यर्थः। जिह्वेति जिह्रीतः / स्वरादाविवोंवर्णान्तस्य धातोरियुवाविति इयादेशः / जिहियति / ओहाक् त्यागे / जहाति जहीत:। जहातेर्वा // 172 / / जहाते: सार्वधातुके व्यञ्जनादावगुणे परे आकार इकारादेशो भवति वा। जहित: जहीत: जहति / जहासि। उभयेषामीकारो व्यञ्जनादावदः / जहीथ: जहिथ: जहीथ जहिथ / जहामि जहीव: जहिव: जहीम: जहिमः। लोपः सप्तम्यां जहातेः // 173 // जहातेरन्तस्य लोपो भवति सप्तम्यां व्यञ्जनादावगुणे सार्वधातुके परे / जह्यात् जह्यातां जह्य: / जहातु जहीतात् जहितात् जहीतां जहितां जहतु। आत्वं वा हो॥१७४॥ जहातेरन्तस्य आत्वं ईत्वमित्वं च भवति वा हौ परे / जहाहि जहिहि जहीहि जहीतात् जहितात् जहीतं जहितं जहीत जहित। जहानि जहाव जहाम। अजहात् अजहीतां अजहितां अजहुः। अजहा: अजहीतं अजहितं अजहीत अजहित / अजहां अजहिव अजहीव अजहिम अजहीम / इत्यादि / ऋ स गतौ। पृ पालनपूरणयोः। अतिपिपत्योश्च // 175 // अनयोरभ्यासस्य इदति सार्वधातुके परे। अभ्यास का आदि व्यंजन अवशेष रहता है // 171 // अर्थात् आदि से बाद के रकार का लोप हो जाता है तब गुण होकर 'जिहेति' जिह्रीत: बना। जिही अति 'स्वरादाविवर्णोवर्णान्तस्य धातोरियुवौ' 83 सूत्र से इय् आदेश होकर 'जिहियति' बना। औहाक्-त्याग करना। ___ हा हा ति' 'हो ज: सूत्र से अभ्यास को 'ज' होकर सूत्र 160 से ह्रस्व होकर 'जहाति' जहा तस्। .. सार्वधातुक व्यंजनादि अगुण विभक्ति के आने पर जहाति धातु के आकार को विकल्प से इकार हो जाता है // 172 // जहितः, १५७वे सूत्र से ईकार होकर 'जहीत:' बना जहा / अन्ति 158. से आकार को लोप होकर नकार का लोप होकर 'जहति' बना। ‘ज हा यात्' सप्तमी में जहाति के अन्त का लोप हो जाता है // 173 // जह्यात् / जहातु जहितात्, जहीतात् / ज हा हि। हि के आने पर जहाति के अन्त को 'आ' ई और 'इ' हो जाता है // 174 // जहाहि, जहीहि, जहिहि / अजहात् / इत्यादि / क्र सृ गति अर्थ में है। पृ धातु पालन और पूरण अर्थ में है। ऋति / पृ पृ ति। __ सार्वधातुक में क्र के अभ्यास को इकार हो जाता है // 175 // इ क्र ति।
SR No.004310
Book TitleKatantra Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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