________________ 234 कातन्त्ररूपमाला अभ्यासस्यासवणे॥१७६ // अभ्यासस्य इवर्णोवर्णयोरियुवौ भवतोऽसवणे परे / इयर्ति इयत: इग्रति / इयर्षि इयथ: इयथ / इयर्मि इयूव: इय॒मः / इय्यात् इय्यातां इय॒युः / इयतु इयतात् इयतां इयतु / इयहि इयृतात् इयतं इयत। इयराणि इयराव इयराम। ऐय: ऐवृतां ऐयरुः। ऐय: ऐवृतं ऐयत। ऐयरं ऐयव ऐयम / गुणोर्तिसंयोगाद्योरिति गुण: / भावे-अर्यते। ऋवर्णस्याकारः // 177 // अभ्यासस्य ऋवर्णस्याकारो भवति / ससर्ति ससृत: सस्रति / सहयात् ससृयातां ससृयुः / ससर्तु ससृतात् ससृतां सस्रतु / असस: अससृतां अससरुः / यणाशिषोये // 17 // ऋदन्तादिकारागमो भवति यणाशिषोर्ये परे / स्रियते / पिपर्ति पिपृत: / पिप्रति / पिपृयात् पिपृयातां पिपृयुः / पिपर्तु पिपृतात् पिपृतां पिप्रतु। अपिप: अपिपृतां अपिपरु: / णिजिर् शौचपोषणयोः / विजिर् पृथग्भावे / विष्ल व्याप्तौ। विष् शब्दे।। निजिविजिविषां गुणः सार्वधातुके // 179 // निजादीनामभ्यासस्य गुणो भवति सार्वधातुके परे / चवर्गस्य किरसवर्णे // 180 // चवर्गस्य किर्भवति असवणे धुटि परे अन्ते च / नेनेक्ति नेनिक्त: नेनिजति / नेनेक्षि नेनिक्थ: नेनिक्थ / नेनेज्मि नेनिज्व: नेनिज्म: / नेनिज्यात् नेनिज्यातां नेनिज्युः। नेनेक्तु नेनिक्तात् नेनिक्तां नेनिजतु / नेनेग्धि नेनिक्तात नेनिक्तं नेनिक्त। असवर्ण के आने पर अभ्यास के इवर्ण उवर्ण को इय् उव् होता है // 176 // आगे गुण होकर इयर्ति, इयत: 'रमृवर्णः' से संधि होकर इय् ऋ अति = इयर्ति / इययात् / इयतु / इय् क्र आनि गुण होकर इयराणि बना।। भावकर्म में ऋ य ते 'गुणोतिसंयोगाद्यो:' 71 सूत्र से गुण होकर 'अर्यते' बना। स स ति अभ्यास के ऋवर्ण को अकार हो जाता है // 177 // गुण होकर ‘ससर्ति' बना। ससृत: सस्रति। सहयात् / ससर्तु / असस: अससृतां अससरुः / भावकर्म मेंयण आशिष् और य् प्रत्यय के आने पर ऋकार से इकार का आगम होता है // 178 // स इ 'रमृवर्णः' से सियते बना / पृ पृ ति 'अर्तिपिपोश्च' 175 सूत्र से अभ्यास को 'इ' होकर गुण होकर पिपर्ति बना / पिपृयात् / पिपर्तु / अपिप: अपिपृतां अपिपरु: / णिजिर-शुद्धि करना, पोषण करना। विजिर्-पृथक् होना, विष्ल-व्याप्त होना, विष्–शब्द करना। णो न:' सूत्र से ण् को न् करके निज् धातु है। निज् निज् ति 171 से अभ्यास के आदि को शेष रखने से ज् का लोप हुआ। सार्वधातुक में निज् विज् और विष् के अभ्यास को गुण हो जाता है // 179 / / एवं गुणी विभक्ति को गुण होकर ने ने ज् ति रहा। असवर्ण, धुट के परे और अन्त में चवर्ग को कवर्ग हो जाता है // 180 // नेनेक्ति नेनिक्त: नेनिजति, नेनेक्षि नेनिक्थः। नेनिज्यात् / नेनेक्तु / नेनेग्धि / नेनिज् आनि /