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________________ 232 कातन्त्ररूपमाला दासंज्ञकस्यास्तेश्च हौ परेन्तस्य एत्वं भवति अभ्यासलोपश्च / यथासंख्यं / धेहि धत्तात् धत्तं धत्त। दधानि दधाव दधाम / धत्तां दधातां दधतां / अजुहोत् अजुहुतां / अन उस्सिजभ्यस्तविदादिभ्योऽभुवः // 166 // सिजभ्यस्तविदादिभ्य: परस्य अन उस् भवति / अभुवः / अभ्यस्तानामुसि॥१६७॥ अभ्यस्तानां गुणो भवति उसि परे। अजुहवुः। अजुहो: अजुहुतं अजुहुत / अजुहवं अजुहुव अजुहुम / अजिहीत अजिहातां अजिहत / अबिभ: अबिभृतां अबिभरुः / अबिभ: अबिभृतं अबिभृत / अबिभरं अबिभृव अबिभृम / अबिभृत अबिभ्रातां अबिभ्रत / अमिमीत अमिमातां अमिमत / अमिमीथाः अमिमाथां अमिमीध्वं / अमिमि अमिमीवहि अमिमीमहि / अदधात अधत्तां। . आकारस्योसि // 168 // आकारस्य लोपो भवति उसि परे। अदधुः / अधत्त अदधातां अदधत। जिभी भये। बिभेति बिभित: बिभीत:। भियो वा॥१६९॥ भियो वा इकारो भवति व्यञ्जनादावगुणे सार्वधातुके परे। . य डवर्णस्यासंयोगपर्वस्यानेकाक्षरस्य // 170 // असंयोगपूर्वस्यानेकाक्षरस्य इवर्णस्य यो भवति स्वरादावगुणे परे / बिभ्यति इत्यादि / ह्री लज्जायां / क्रम से—धेहि तातण में—धत्तात् / धत्तां / अजुहोत् / अजुहु अन् है। . भू को छोड़कर सिच् अभ्यस्त और विवादि से परे अन् को 'उस्' हो जाता है // 166 // उस् के आने पर अभ्यस्त को गुण हो जाता है // 167 // .. अजुहवुः बना अजुहो: अजुहु + अम्-अजुहवम् / अजिहीत। अबि भृ दि / 'व्यंजनादिस्यो:' से सि दि का लोप होकर गुण होकर र का विसर्ग हुआ अबिभः / अन् में-अबिभरु: / अबिभ्रत / अमिमीत / अदधात् / अधत्तां / 'अ द धा उस्' / उस् के आने पर आकार का लोप हो जाता है // 168 // . अदधुः / अधत्त / विभी धातु भय अर्थ में है भी भी ति चतुर्थ को तृतीय अक्षर एवं डुधाञ् ह्रस्व: 160 सूत्र से अभ्यास को ह्रस्व होकर एवं धातु को गुण होकर 'बिभेति' बना। 'बिभी तस्' है। व्यंजनादि अगुण सार्वधातुक के आने पर 'भी' को विकल्प से इकार हो जाता है // 169 // अत: बिभित:, बिभीत: / बिभी अन्ति १५४वें सूत्र से नकार को लोप होकर स्वरादि अगुणी विभक्ति के आने पर असंयोग पूर्व अनेकाक्षर वाले इवर्ण को यकार हो जाता है // 170 // बिभ्यति बना / ही धातु-लज्जित होना / ह्री ही ति ‘हो ज:' से 'जी' 160 सूत्र से ह्रस्व होकर जि
SR No.004310
Book TitleKatantra Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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