________________ तिङन्त: 213 दृशेः पश्यः // 19 // दृशेर्धातो: पश्यादेशो भवत्यनि परे / पश्यति / दृश्यते / ऋ प्रापणे / ऋ सृ गतौ / अर्तेः ऋच्छः // 70 // अर्ते: ऋच्छादेशो भवत्यनि परे / ऋच्छति / गुणोतिसंयोगाद्योः // 71 / / अत्तें: संयोगादेश्च धातोर्गुणो भवति / यकारादौ प्रत्यये परे / अर्यते / सर्तेर्धावः // 72 // सर्तेर्धावादेशो भवत्यनि परे। धावति। यणाशिषोर्य इति इकारागमः। स्रियते। ननु धावुगतावित्ययमपि धातुरस्ति / जवाभिधाने यथा स्यात् / तेन प्रियामनुसरति / शद्लु शातने। . शदेः शीयः॥७३॥ शदेः शीयादेशो भवत्यनि परे। शदेरनि / / 74 // शदेरनि परे आत्मनेपदं भवति / यदि धातुः रुचादिर्भवत्यनि परे। शीयते शीयेते शीयन्ते / कर्मणि-शद्यते / पक्षे कश्चित्तमन्य: प्रयुङ्क्ते शादयति / षद्लु विशरणगत्यवसादनेषु / . सदेः सीदः / / 75 // अन् के आने पर दृश् को पश्य होता है // 69 // पश्यति / कर्म में-दृश्यते / ऋ धातु प्राप्त कराने अर्थ में है। ऋ सृ गति अर्थ में है। अन् के परे ऋ धातु को ऋच्छ हो जाता है // 70 // ऋच्छति / ऋ य ते इस स्थिति मेंयकारादि प्रत्यय के आने पर ऋ और संयोगादि धातु को गुण हो जाता है // 71 / / क्र को गुण होकर अर्-अर्यते य को द्वित्व होकर अर्यते / स अ ति। . अन् के आने पर सृ को धाव् हो जाता है // 72 // धावति / कर्म में-सृ य ते / “यणाशिषोर्य" नियम से इकार का आगम हो गया। स्रियते बना। धावु गति अर्थ में है यह भी एक धातु है पुन: स को धावु आदेश क्यों किया ? यदि दौड़ने अर्थ में है तब तो धावु स्वतंत्र धातु है अन्यथा चलने अर्थ में सू को धाव् आदेश होता है। सृ का रूप भी चलता है प्रियामनुसरति-प्रिया का अनुसरण करता है। शद्ल धातु शातन अर्थ में है। अन् के आने पर शद् को शीय आदेश होता है // 73 // अन् के आने पर शद् को आत्मने पद हो जाता है // 74 // अन् के आने पर शद् धातु रूचादि गण में हो जाती है। शीयते शीयेते / कर्म में-शयते / पक्ष में-शीयते तं कोऽपि प्रेरयति कोई अन्य उसको प्रेरित करता है। 'शादयति' बना। षद्लु धातु विशरण, गति ओर अवसादन अर्थ में है। अन् के आने पर सद् को सीद् होता है // 75 //