________________ 212 कातन्त्ररूपमाला गमिष्यमां छः / / 62 // गम इषु यम् एषामन्त्यस्य छो भवत्यनि परे / गच्छति / इच्छति / यच्छति / गम्यते। इष्यते / यम्यते / पा पाने। पः पिबः॥ 63 // पाधातो: पिबादेशो भवत्यनि परे / पिबति / दामागायतिपिबतिस्थास्यतिजहातीनामीकारो व्यञ्जनादौ चेत्याकारस्य ईकारः। पीयते / घ्रा गन्धोपादाने / घ्रो जिघ्रः॥ 64 // घ्राधातोर्जिघादेशो भवत्यनि परे / जिघ्रति / घायते / ध्मा शब्दाग्निसंयोगयोः। . ध्मो धमः // 65 // धमाधातोर्धमादेशो भवत्यनि परे / धमति / ध्यामते / स्था गतिनिवृत्तौ / स्थस्तिष्ठः // 66 // स्थाधातोस्तिष्ठादेशो भवत्यनि परे / तिष्ठति / स्थीयते / म्ना अभ्यासे। म्नो मनः // 67 // म्नाधातोर्मनादेशो भवत्यनि परे / मनति / नायते / दाण् दाने / दाणो यच्छः // 68 // दाण्धातोर्यच्छादेशो भवत्यनि परे / प्रयच्छति / प्रदीयते / दृशिर् प्रेक्षणे। अन् के आने पर गम् इषु यम के अन्त को 'छ' आदेश हो जाता है // 62 // ग छ अ ति / छ को द्वित्व और प्रथम अक्षर होकर 'गच्छति' बना। इच्छति / यच्छति / कर्म में गम्यते / इष्यते / यम्यते बना। चारों में रूप बनेंगे। पा धातु पीने अर्थ में है। अन् विकरण के आने पर पा धातु को पिब् आदेश हो जाता है // 63 // अ का अनुबंध होकर पिबति पिबत: पिबन्ति / कर्मणि प्रयोग में—पा यण ते / दा, मा, गायति पिबति, स्थास्यति, जहाति इन धातु से व्यञ्जनादि विभक्ति प्रत्यय के आने पर आकार को ईकार हो जाता है। पीयते. मीयते. गीयते आदि बन जाते हैं। घ्रा धातु सूंघने अर्थ में है। घ्रा अन् ति। अन् के आने पर घ्रा को जिघ्र आदेश हो जाता है // 64 // जिघ्रति / घ्रायते / ध्मा धातु शब्द और अग्नि के संयोग में है। अन् के आने पर ध्मा को धम् आदेश हो जाता है // 65 // धमति / कर्म में ध्यायते / स्था धातु ठहरने अर्थ में है। स्था को तिष्ठ आदेश हो जाता है // 66 // अन् के आने पर / तिष्ठति / स्थीयते / म्ना धातु अभ्यास अर्थ में है / म्ना अति / ना को मन् आदेश हो जाता है // 67 // मनति / कर्म में-नायते / दाण् धातु देने अर्थ में है। दाण को यच्छ आदेश होता है // 68 // अन् के आने पर / यच्छति / प्रपूर्वक कर्म में—प्रदीयते / दृशिर् धातु देखने अर्थ में है।