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________________ 214 कातन्त्ररूपमाला सदेः सीदादेशो भवत्यनि परे / सीदति सीदतः सीदन्ति / इति भ्वादयः / / अथ अदादिगणः अद् प्सा भक्षणे / पूर्ववत् वर्तमानादीनां / अदादेर्लुग्विकरणस्य // 76 // अदादेर्गणाद्विकरणस्य लुग्भवति / अघोषेष्वशिटां प्रथमः // 77 // अघोषेषु प्रत्ययेषु परे अशिटां धुटां प्रथमो भवति / अत्ति अत्त: अदन्ति / अत्सि अत्थ: अत्थ / अघि अद्वः अद्य: / शीङ् स्वप्ने। ' शीङ सार्वधातुके // 78 // शीडो गुणो भवति सार्वधातुके परे / शेते शयाते / आत्मने चानकारात् // 79 // अनकाराच्चात्मनेपदे अन्तेर्नकारस्य लोपो भवति / शेतेरिरन्तेरादिः // 8 // शेते: परस्य अन्तरादिरिर्भवति / शेरते / शेषे शयाथे शेध्वे / शये शेवहे शेमहे / ब्रूव्यक्तायां वाचि / सीदति सीदत: सीदति / इन सभी धातुओं के रूप सार्वधातुक चारों विभक्तियों में चलते हैं। इस प्रकार से भ्वादि गण का प्रकरण समाप्त हुआ। अब अदादि गण प्रारंभ होता है। अद् प्सा, भक्षण अर्थ में है। पूर्ववत् वर्तमान आदि में चलते हैं। अद् अ ति है। ___अदादि गण से अन् विकरण का लुक् हो जाता है // 76 // अघोष प्रत्ययों के आने पर अशिट् धुट् को प्रथम अक्षर होता है // 77 // इसलिये अत्ति अत्त: / 'अद् अ अन्ति' विकरण का लुक् होकर अदन्ति बना। अत्ति अत्त: अदन्ति / अत्सि अत्थ: अत्थ / अनि अद्वः अद्यः / शीङ् धातु शयन करने अर्थ में है। ङानुबंध धातु आत्मनेपदी होते हैं। ___सार्वधातुक में शीङ् धातु को गुण होता है // 78 // 'शे अ ते' विकरण का लक होकर शेते। शे+आते =शयाते। आत्मनेपद में अन्ते के नकार का लोप हो जाता है // 79 // शेते से परे अन्ते की आदि में रकार का आगम होता है // 80 // शेरते। शेषे शयाथे शेध्वे। शेते शयाते शेरते / शेषे शयाथे शेध्वे / शये शेवहे शेमहे। बूब् धातु स्पष्ट बोलने अर्थ में है।
SR No.004310
Book TitleKatantra Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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