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________________ तिङन्त: 207 धातोरादावडागमो भवति ह्यस्तन्यद्यतनीक्रियातिपत्तिषु परतः / पदान्ते धुटां प्रथमः // 25 // * पदान्ते वर्तमानानां धुटां अन्तरतमः प्रथमो भवति / अभवत् अभवतां अभवन् / अभवः अभवतं अभवत / अभवं अभवाव अभवाम / भावे-अभूयत / कर्मणि-अन्वभूयत अन्वभूयेतां अन्वभूयन्त / अड धात्वादिसूत्रबाधनार्थमुत्तरयोगः।। स्वरादीनां वृद्धिरादेः // 48 // स्वरादीनां धातूनां आदिस्वरस्य वृद्धिर्भवति हस्तन्यादिषु परतः। ऐधत ऐधेतां ऐधन्त / ऐधथा ऐधेथां ऐधध्वं / ऐधे ऐधावहि ऐधामहि / भावे-ऐध्यत / कर्मणि-ऐध्यत ऐध्येतां / ऐध्यन्त / अपचत् अपचतां अपचन् / अपचत अपचेतां अपचन्त / भावे-अपच्यत / कर्मणि-अपच्यत अपच्येतां अपच्यन्त / पद के अंत में धुट को प्रथम अक्षर होता है // 25 // 'अभवत' बन गया। सि विभक्ति के इकार का अनुबंध होकर अभव: बना / व, म के आने पर पूर्व स्वर को दीर्घ होकर अभवाव अभवाम बना / अम् के आने पर भी सूत्र २६वें से अकार का लोप हुआ है। ___ अभवत् अभवतां अभवन् / अभव: अभवतं अभवत / अभवम् अभवाव अभवाम / भाव अर्थ में अभूयत। कर्म में-अन्वभूयत अन्वभूयेतां अन्वभूयन्त .. अन्वभूयथा: अन्वभूयेथां , अन्वभूयध्वं __ अन्वभूये अन्वभूयावहि अन्वभूयामहि यहाँ अट का आगम करने के बाद में यदि उपसर्ग का प्रयोग हो तो धातु के बाद में अट का आगम होता है। इसको बाधित करने के लिये आगे का सूत्र कहते हैं ए ध् + अ त है। कहने का मतलब यह है कि यदि व्यञ्जन से धातु का आरम्भ तो अट होता स्वर से वृद्धि हो उपसर्ग पूर्वक धातु का प्रयोग हो तो उपसर्ग के बाद धातु से पहले अट् हो। ह्यस्तनी आदि के आने पर स्वर है आदि में जिसके ऐसे धातु के आदि स्वर को वृद्धि हो जाती है // 48 // भाव अर्थ में-ऐध्यत। अत:-ऐधत ऐधेतां ऐधन्तां ऐधथा: ऐधेथां ऐधध्वं ऐधे ऐधावहि ऐधामहि / अपचत् अपचतां अपचन् / अपच: अपचतं अपचत / अपचम् अपचाव अपचाम / आ०-अपचत अपचेतां अपचन्त / अपचथा: अपचेथां अपचध्वं / अपचे अपचावहि अपचामहि / भाव में-अपच्यत / कर्म में-अपच्यत अपच्येतां अपच्यन्त अपच्यथा: अपच्येथां अपच्यध्वं अपच्ये अपच्यावहि अपच्यामहि
SR No.004310
Book TitleKatantra Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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