________________ 208 कातन्त्ररूपमाला ____मास्मयोगे हस्तनी च॥ 49 // मास्मयोगे शस्तन्यद्यतनी च भवति / न मामास्मयोगे॥५०॥ मायोगे मास्मयोगे च धातोरादावडागमो न भवति / मास्म भवत् मास्म भवतां मास्मभवन् // मास्म एधत मास्म एघेतां मास्म एधन्त / मास्म पचत् मास्म पचतां मास्म पचन् // मास्म पचत मास्म पचेतां मास्म पचन्त / भावे-मास्म भूयत / कर्मणि-मास्मानुभूयत मास्मानुभूयतां मास्मानुभूयन्त / श्रु श्रवणे। श्रुवः शृ च / / 51 // श्रुवो धातोर्नुप्रत्ययो भवति सार्वधातुके परे शृ आदेशश्च / शृणोति शृणुतः शृण्वन्ति / अन्विकरण: कर्तरीति निर्देशात् द्वित्वबंहुत्वयोश्च परस्मै सप्तम्यां च हि वचने च गुणो न भवति / उत्तरत्र प्रदर्श्यते / शृणुयात् शृणुयातां शृणुयुः / शृणोतु / न णकारानुबन्धचेक्रीयितयेति श्रुवस्तातण्प्रत्यये गुणनिषेधः / शृणुतात् शृणुतां शृण्वन्तु। नोश्च विकरणादसंयोगात्॥५२॥ मास्म के योग में ह्यस्तनी, अद्यतनी विभक्तियाँ होती हैं // 49 // मा और मास्म के योग में धातु की आदि में अट् का आगम नहीं होता है // 50 // मास्म भवत्, मास्म भवतां, मास्म भवन् / मास्म एधत / मास्म पचत / भाव में मास्म भूयत / कर्म में मास्म अनुभूयत / इत्यादि। श्रु धातु सुनने अर्थ में है। श्रु धातु से 'नु' विकरण होता है सार्वधातुक के आने पर, एवं श्रु को 'शृ' आदेश होता है // 51 // शृणोति शृणुत: शृण्वन्ति शृणोषि शृणुथः शृणुथ शृणोमि शृणुवः शृणुमः / "अन् विकरण: कर्तरि” इस निर्देश से द्विवचन और बहुवचन में परस्मैपद की सप्तमी में 'हि' विभक्ति गुण नहीं होती है यह बात आगे बतलायेंगे। यह श्रु धातु "स्वादि गण” की है अत: इसमें अन् विकरण न होकर 'नु' विकरण होता है। सप्तमी में-शृणुयात् शृणुयातां शृणुयुः शृणुयाः शृणुयातं शृणुयात शृणुयाम् शृणुयाव शृणुयाम पञ्चमी में—“नणकारानुबंध चेक्रीयतयोः” इस सूत्र से श्रु धातु से तातण् प्रत्यय होने पर गुण का निषेध हो गया है। अत: शृणुतात् बना। शृणु हि है। असंयोग से पूर्व नु विकरण से परे 'हि' का लोप हो जाता है // 52 //