________________ 206 कातन्त्ररूपमाला __ अकारात्परस्य हेलोपो भवति अहन्तेः / भव, भवतात्, भवताद् भवतं भवत / भवानि भवाव भवाम। भावे-भूयतां / कर्मणि-अनुभूयतां / - आदातामाथामादेरिः॥ 45 // अकारात्परयो: आतां आथां। इत्येतयोरादिरिर्भवति / अनुभूयेतां। अनुभूयन्तां। अनुभूयस्व अनुभूयेथां अनुभूयध्वं / अनुभूयै अनुभूयावहै अनुभूयामहै। एधतां एधेतां एधन्तां / एधस्व एधेथां एधध्वं / एधै एधावहै एधामहै। भावे-एध्यतां / कर्मणि-एध्यतां एध्येतां एध्यन्तां / पचतु पचतात् पचताद् पचतां पचन्तु / पचतां पचेतां पचन्तां / भावे-पच्यतां / कर्मणि-पच्यतां पच्येतां पच्यन्तां / भूतकरणवत्यश्च // 46 // भूतमतीतं करणं क्रिया यस्य तद्भूतकरणं साधनं तद्विद्यते यासां ता भूतकरणवत्य: / भूतकरणवत्यो हस्तन्यद्यतनीक्रियातिपत्तयोऽतीते काले भवन्ति / ह्यो भव: कालो ह्यस्तन: तत्र शस्तनी भवति / ___ अड् धात्वादिस्तन्यद्यतनीक्रियातिपत्तिषु // 47 // ... भव, भवतात्। भवतु भवतात्, भवतां, भवन्तु / भव, भवतात् / भवतं भवत / भवानि भवाव भवाम / भाव में-भूयतां / कर्म में अनुभूयतां / अनुभूय आता है। अकार से परे आतां, आथां की आदि को इकार हो जाता है // 45 // अनुभूयेतां, अनुभूयन्तां / अनुभूयतां अनुभूयेतां अनुभूयन्तां / अनुभूयस्व, अनुभूयेथां अनुभूयध्वं / अनुभूयै अनुभूयावहै : अनुभूयामहै। पंचमी-एधतां एधेतां एधन्तां / पचतु, पचतात् / पचतां, पचंतु एधस्व एधेथां , एधध्वं पच, पचतात् पचत एधै एधावहै एधामहै | पचानि पचाव पचाम। भाव में-एध्यतां। कर्म मेंआत्मने-पचतां पचेतां पचन्तां | पच्यतां पच्येतां पच्यन्तां पचस्व पचेथां पचध्वं / पच्यस्व .पच्येथां पच्यध्वं __पचै पचावहै पचामहै | पच्यै / / पच्यावहै पच्यामहै। भाव में-पच्यतां। भूतकरण वती शस्तनी आदि विभक्तियाँ हैं // 46 // अतीत काल की क्रिया है जिसमें उसे भूतकरण कहते हैं वह भूतकरण साधन जिनके पाया जाता है वे क्रियायें भूतकरणवती अर्थात् अतीत काल वाली कहलाती हैं / ह्यस्तनी, अद्यतनी और क्रियातिपत्ति ये विभक्तियाँ अतीत काल में होती हैं / ह्य:-बीता हुआ कल का काल ‘ह्यस्तन:' कहलाता है उस अर्थ में 'ह्यस्तनी' विभक्ति होती है। ___'भू' धातु से दि विभक्ति आई इकार का अनुबंध होकर अन् विकरण और गुण हुआ। 'भव् अ द्' रहा। __ह्यस्तनी, अद्यतनी, क्रियातिपत्ति के आने पर धातु की आदि में 'अट्', क़ा आगम होता है // 47 //