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________________ समास: 165 से नस्य नकारमात्रस्य लोपो भवति / न सवर्ण: असवर्ण: / न ब्राह्मण: अब्राह्मणः / एतल्लक्षणं तत्पुरुस्यैव, अन्येषां समासानां कथमिदं लक्षणं ? न विद्यते घोषो ध्वनिर्येषां ते अघोषा: ? तथा तत्पुरुष इहोपलक्षणं / उपलक्षणं किम् ? स्वस्य स्वसदृशस्य च ग्राहकमुपलक्षणं / यथा दधि काकेभ्यो रक्षति। __ स्वरेऽक्षरविपर्ययः // 463 // तत्पुरुष समासे नस्य अक्षरविपर्ययो भवति स्वरे परे / न अज: अनजः। एवमनर्घ्य: / अनर्थः / अनकारः। अनिन्द्रः / अनुदकमित्यादि / कोः कत्॥४६४॥ कुशब्दस्य कद्भवति तत्पुरुषे स्वरे परे / स्वपदविग्रहो नास्तीत्यन्यपदविग्रहः / कुत्सितश्चासौ अश्वश्च कदश्व: / कदन्नं / कदुष्ट्रः / तत्पुरुष इतिं किम् ? कुत्सिता उष्ट्रा यस्मिन्देशे स कूष्ट्रो देशः / का क्वीषदर्थेऽक्षे॥४६५ / / ईषदर्थे वर्तमानस्य कुशब्दस्य कादेशो भवति तत्पुरुष समासे अक्षशब्दे च परे / कु ईषल्लवणं कालवणं / काम्लं / कामधुरं / काज्यं / काक्षीरं / कादधि / कु ईषत् तन्त्रं कातन्त्रम् / काक्षेण वीक्षते। कवचोष्णे // 466 // अत: 'न्' का लोप होकर अकार शेष रहा और असवर्णः, अब्राह्मण: बन गया। यह लक्षण तत्पुरुष समास का ही है। अन्य समासों का यह लक्षण कैसे है ? यहाँ इस समास को तत्पुरुष का लक्षण कहना यह उपलक्षण है। उपलक्षण क्यों है ? अपने और अपने सदृश के ग्रहण करने वाले को उपलक्षण कहते हैं। जैसे दही की कौवे से रक्षा करता है यहाँ पर अन्य मार्जार कुत्ता आदि उपलक्षण है उनका भी निषेध हआ समझना चाहिये। . न विद्यते घोषो ध्वनिर्येषां ते अघोषा: बन गया। न अजः, न अर्घ्य: है। . स्वर के आने पर नकार का अक्षर विपर्यय हो जाता है // 463 // तत्पुरुष समास में अगले स्वर में नकार चला जाता है और अकार शेष रह जाता है। जैसे अनज:. * 'अनर्घ्य: अनर्थः, अनकार: न इन्द्रः अनिन्द्रः, न उदकम्-अनुदकम् / इत्यादि / कुत्सितश्चासौ अश्वश्च ऐसा विग्रह हुआ है। तत्पुरुष समास में स्वर को आने पर 'कु' को 'कत्' हो जाता है // 464 // इसमें भी स्वपद से विग्रह नहीं होता है अत: अन्य पद से विग्रह किया है। कत् + अश्वः = संधि होकर कदश्व: बना। ऐसे ही कुत्सितं च तदनं-कदन्नं, कुत्सितश्चासौ उष्ट्रश्च-कदुष्ट्रः / तत्पुरुष में ही कु * को कत् होता है ऐसा क्यों ? तब तो कुत्सिता उष्ट्रा: यस्मिन् देशे स कूष्ट्रो देश: / यहाँ बहुव्रीहि समास होने से 'कु' ही रहा 'कत्' नहीं हुआ। ईषत् अर्थ में और अक्ष शब्द के आने पर 'कु' को 'का' आदेश हो जाता है / / 465 // ___तत्पुरुष समास में किंचित् अर्थ में वर्तमान कु शब्द को 'का' आदेश हो जाता है और अक्ष शब्द परे होने पर भी हो जाता है / कु ईषत् लवणं-कालवणं, कु ईषत् आम्लं काम्लं कु मधुरं कामधुरं, काक्षीरं, कादधि, कु ईषत् तंत्रं (सूत्र) कातन्त्रं, काक्षं / उष्ण शब्द से परे 'कु' को 'कव' हो जाता है // 466 //
SR No.004310
Book TitleKatantra Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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