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________________ समास: 163 समासान्तर्गतानां वा राजादीनामदन्तता // 456 // समासान्तर्गतानां राजादीनामदन्तता अत्प्रत्ययो भवति / वा समुच्चये। पञ्चानां गवां समाहार: पञ्चगवं / चतुर्णां पथा समाहार: चतुष्पथं / न सूत्रे क्वचित् / / 457 // क्वचित्सूत्रे द्वन्द्वैकत्वं भवति, नपुसकलिङ्गत्वं न स्यात्। विरामव्यञ्जनादौ। एवं पचिवचिंसिचिरुचिमुचेश्चात् / इत्यादि। पुंवद्भाषितपुंस्कानूङपूरण्यादिषु स्त्रियां तुल्याधिकरणे // 458 // स्त्रियां वर्तमानं भाषितपुंस्कं अनूङन्तं पूर्वपदभूतं पुंवद्भवति स्त्रिया वर्तमाने तुल्याधिकरणे परण्यादिगणवर्जिते उत्तरपदे परे। शोभना भार्या यस्यासौ शोभनभार्यः / एवं दीर्घजड्यभार्यः / इत्या भाषितपुंस्कमिति किं ? द्रोणीभार्यः। अनूङ् इति किम् ? ब्रह्मवधूभार्य: / अपूरण्यादिष्विति किं ? कल्याणी पञ्चमी यासां रात्रीणां ता: कल्याणीपञ्चमा रात्रय: / के पूरण्यादय: ? पूरणी पञ्चमी कल्याणी मनोज्ञा सुभगा दुर्भगा स्वकान्ता कुब्जा वामना / संज्ञापूरणीकोपधास्तु न // 459 // स्त्रियां वर्तमाना भाषितपुंस्कानूङन्ता: संज्ञापूरणीप्रत्ययान्ता: कोपधा: पूर्वपदभूता: पुंवद्रूपा न भवन्ति समास के अन्तर्गत राजादि शब्द अकारांत हो जाते हैं // 456 // यहाँ सूत्र में 'वा' शब्द समुच्चय के लिये है अत: पञ्चगो से 'अ' प्रत्यय होकर अव् होकर लिग संज्ञा एवं विभक्ति आकर 'पंचगवं' बना। ऐसे ही चतुष्पथि में “इवर्णावर्णयोर्लोप: स्वरे प्रत्यये ये च" सूत्र से इकार का लोप, लिंग संज्ञा होकर 'चतुष्पथं' बना। किसी सूत्र में द्वंद्व में एकत्व होता है, किन्तु नपुंसकलिंग नहीं होता है // 457 / / विराम और व्यंजन का समास करके ङि विभक्ति एकवचनान्त है। किन्तु नपुंसकलिङ्ग नहीं है यदि नपुंसकलिङ्ग होता तो वारि शब्दवत् न का आगम होकर आदिनि हो जाता न कि आदौ / .. तुल्याधिकरण में पूरणी आदि गण को छोड़कर स्त्रीलिंग में वर्तमान अकारांत रहित भाषितपुंस्क को पुंवद् हो जाता है // 458 // जैसे-शोभना भार्या यस्य स: शोभनभार्या बना / पुन: ४३२वें सूत्र से अन्त को अकारांत होकर शोभनभार्य: बना / ऐसे ही दीर्घजंघभार्य: इत्यादि / भाषितपुंस्क हो ऐसा क्यों कहा ? भाषितपुस्क नहीं हो तो ह्रस्व नहीं होगा जैसे—द्राणीभार्य: यहाँ द्रोणी शब्द भाषितपुंस्क नही है नित्य ही स्त्रीलिंग है। ___ अनूङ् ऐसा क्यों कहा ? तो ब्रह्मवधूभार्य: यहाँ वधू शब्द ऊकारांत है उसे ह्रस्व नही हुआ। . पूरणी आदि गण को छोड़कर ऐसा क्यों कहा ? पूरणी आदि गण के शब्दो को भी ह्रस्व नहीं होगा। जैसे-कल्याणी पञ्चमी यासां रात्रीणां ता: कल्याणीपञ्चमा: / रात्रयः / पूरणी आदि गण में कौन-कौन हैं ? पूरणी, पञ्चमी, कल्याणी, मनोज्ञा, सुभगा, दुर्भगा, स्वकान्ता, कुब्जा, वामना / ये शब्द पूरणी आदि गण में माने गये हैं। .. संज्ञा पूरणी प्रत्ययात 'क' की उपधा वाले पूर्वपदभूत पुवद् रूप नहीं होते हैं // 459 // ___ स्त्रीलिंग में वर्तमान तुल्याधिकरण पद मे परणी आदि गण वर्जित उत्तर पद के होने पर स्त्रीलिंग में वर्तमान भाषित पुंस्क से अकारात रहित, सज्ञा पूरणी प्रत्ययात वाले एवं 'क' की उपधा वाले शब्दों को पूर्वपद में ह्रस्व नहीं होता है / जैसे दत्ता भार्या यस्यासौ दत्ताभाय पञ्चमी भार्या यस्यासौ पंचमीभार्य:,
SR No.004310
Book TitleKatantra Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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